खुशवंतनामा : मेरे जीवन के सबक

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मैं अब उस अवस्था में हूं, हिंदू मान्यताओं के अनुसार जिसे जीवन का चौथा और अंतिम आश्रम माना जाता है, संन्यास। मुझे एकांत में ध्यान-तप करना चाहिए था, मुझे सभी माया-मोह का त्याग कर देना चाहिए था और सभी दुनियावी लगावों का भी। गुरु नानक के अनुसार, वह व्यक्ति जो नब्बे साल की उम्र के बाद जीता है उसे कमज़ोरी महसूस होती है, उसे अपनी कमज़ोरी का कारण समझ में नहीं आता है और इसलिए वह लेटा रहता है। मैं अभी तक जीवन की ऐसी अवस्थाओं में नहीं पहुंचा हूं।

98 साल की उम्र में, मैं खुद को भाग्यवान मानता हूं कि मैं आज भी हर शाम अपने सिंगल माल्ट व्हिस्की का आनंद उठाता हूं। मैं स्वादिष्ट खाने का आनंद उठाता हूं, ताज़ातरीन गप्पों और स्कैंडलों के बारे में सुनने को तत्पर रहता हूं। जो लोग मुझसे मिलने आते हैं उनसे मैं कहता हूं, ‘अगर आपके पास किसी के लिए कहने के लिए कुछ अच्छा नहीं है, तो आइए और मेरी बगल में बैठिए।’ ‘मैं अपने आसपास की दुनिया को लेकर अपनी दिलचस्पी को बनाए रखता हूं : मुझे सुंदर महिलाओं का संग-साथ अच्छा लगता है; मैं कविता और साहित्य का आनंद उठाता हूं, और प्रकृति को देखने में।

और मेरी उम्र तक जीने वाले आदमी के बारे में गुरु नानक की भविष्यवाणी के बावजूद, मैं लेटे रहने में ज़्यादा वक्त नहीं बिताता- मैं अब भी सुबह चार बजे उठ जाता हूं और दिन में ज़्यादातर वक्त आराम कुर्सी पर बैठकर लिखने और पढ़ने में बिताता हूं। पूरी उम्र मैंने कड़ी मेहनत की है; मैं आदतों वाला आदमी रहा हूं और मैं बेहद अनुशासित रूप से अपनी रोज़ रोज़ की दिनचर्या का पिछले पचास सालों से पालन करता रहा हूं। इसने नब्बे पार की इस उम्र में भी मुझे सेहतमंद बनाए रखा है।

लेकिन पिछले सालों में मैं धीमा होता गया हूं। मैं जल्दी ही थक जाता हूं, और काफी हद तक बहरा हो गया हूं। आजकल, अक्सर अपनी सुनने वाली मशीन को हटा देता हूं, क्योंकि टीवी और मिलने आने वालों की बातचीत की आवाज़ मुझे थका डालती है। और मैं पाता हूं कि मैं उस चुप्पी का आनंद उठाने लगता हूं जो उस बहरेपन की वजह से मिलती है। जब ख़ामोशी में डूबा हुआ मैं बैठता हूं तो मैं अक्सर अपने जीवन में पीछे देखता हूं। यह सोचते हुए कि इसे किसने भरा-पूरा बनाया, मेरे लिए क्या और कौन महत्वपूर्ण रहे हैं; जो गलतियां मैंने कीं और जो अफ़सोस मुझे हैं। मैं यह सोचता हूं कि मैंने कितना बहुमूल्य समय बिना वजह की सामाजिकता में बर्बाद किया, मिलने-जुलने में, और अपने जीवन के सालों मैंने वकील और राजनयिक के रूप में काम करने में बिताए, तब जाकर मैंने लिखना शुरू किया। मैं रोज़ रोज़ के जीवन में दयालु होने के महत्व के बारे में सोचता हूं; हंसी की आरोग्यकारी शक्ति के बारे में- जिसमें खुद के ऊपर हंस सकने की क्षमता भी शामिल है; और ईमानदार होने के लिए क्या करना पड़ता है-दूसरों के प्रति और अपने प्रति भी।

मेरे जीवन ने अपने उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन मैंने इसे भरपूर जिया है, और मुझे लगता है मैंने इसके सबक भी सीखे हैं।

अक्टूबर 2012

खुशवंत सिंह

(अंग्रेजी से अनुवाद : प्रभात रंजन)
साभार - खुशवंतनामा
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