शब्द

शब्द

उतरे हैं, ढंग अजीब,
मगर शातिर बड़े हैं,
पैनापन लिये, और
उतावले भी,
चलो आज कुछ
कमाल करते हैं,
लड़ते हैं किसी से,
या खुद से उलझते हैं,
हां, शब्द हैं,
शब्दों की आदत जो है,
चुप नहीं हैं,
इतरायेंगे,
जलेंगे, बुझेंगे,
बुझकर जलेंगे,
जलते जायेंगे,
रोशनी होगी,
सवेरा भी,
क्या करें शब्द हैं,
हम भी बुनते जायेंगे.

-हरमिन्दर सिंह. 

मेरा फेसबुक पन्ना >>