एक कैदी की डायरी -7



नये जेलर के बारे में सुना है कि वह काफी क्रूर है। उसके लिए कैदी केवल कैदखाने में सड़ने की कोई वस्तु है। मैं सहम सा गया हूं। मुझे घबराहट हो रही है। पुराने साहब ने विदा लेते समय मुझसे कहा था,‘भरोसा रखो, सब ठीक होगा।’ उनकी पोस्टिंग ऐसी जगह हुई है जहां उनसे मेरा संपर्क नहीं हो सकेगा। खैर, उनका कहा याद है।

भावनाएं जहां मर रही होती हैं, जीना वहां बेकार है। ऐसे जीवन का मोल क्या? मुझे लगने लगा है कि मैं यही न रह जाऊं। लाजो और मेरा संबंध शायद अब टूट सा गया है। उसका कहीं पता नहीं चला। मैं पता लगवाने के लिए जेल के कई बड़े लोगों के सामने गिड़गिड़ाया। किसी ने उसपर गौर नहीं किया। पिछले जेलर ने इतना बताया था कि पता कर रहे हैं। फिर कुछ समय बाद उनका तबादला हो गया। भला मेरे बीवी-बच्चों ने किसी का क्या बिगाड़ा है? भगवान उनका दुख मुझे दे दे। परिवार का स्मरण होने पर मैं तिलमिला जाता हूं। इंसान को अपनों की याद सबसे अधिक झकझोरती है। हम खुद को विवश महसूस करने लगते हैं। साथ जो लंबा हो, यदि बीच में छूट जाए तो दर्द बहुत होता है, तब दिल रोता है। मेरा हृदय भी आम इंसान वाला ही है। मैं किसी से कुछ कहना नहीं चाहता अब। बहुत हो गयी दुनियादारी की बातें। मुझे लगता है मेरा जीवन असमंजस के सिवा कुछ नहीं है। यह सब हालात के कारण उपजी स्थिति है। हालात आपके बस से बाहर की चीज हैं। ये व्यक्ति को कभी कैसा तथा कभी कैसा बना देते हैं। अपना जीवन यूं ही हालातों के हाथ में छोड़ा भी तो नहीं जाता। मैं ऐसा करने वाला नहीं था। पर क्या करुं करना पड़ रहा है। स्थिति बिगड़ते देर नहीं लगती। बनते-बनते बहुत कुछ बिगड़ जाता है और हम एक निहत्थे की तरह युद्ध भूमि में खड़े रह जाते हैं। वहां कोई अपना नहीं होता और पराजय की हंसी हमें भीतर तक चीरती जाती है।

contd......

-harminder singh