एक कैदी की डायरी -10


सवाल जिंदगी में बहुत होते हैं। तमाम जीवन यही सोचने में लगता जाता है- यह हल है या वह। भ्रम की स्थिति बड़ी रोचक होती है। सवालों का घेरा निरंतर बढ़ता रहता है। हम सोचते बहुत हैं, करते उतना नहीं। जीवन एक बड़ा सवाल है। अपना जीवन तबाह होते हुए कौन देखना चाहेगा? मैं कभी ओरों को उनकी उलझनों से बाहर करता था। आज खुद उलझनों में उलझ कर रहा गया हूं। सवालों को हल करते-करते सब कुछ मिट जायेगा, मगर न सोच थमेगी, न सवाल, बेशक सांसें थम जायेंगी।

वीरानी को देखकर अजीब से सन्नाटे का अहसास होता है। मुझे लग रहा है सन्नाटा चारों ओर पसरा है। सब कुछ जैसे शांत हो गया है। मेरे आसपास कोई नहीं है, कोई भी तो नहीं। मैं अकेला हूं, सिर्फ अकेला। इस अकेलेपन में मेरे साथ कोई कैसे हो सकता है, क्योंकि जब इंसान अकेला पड़ जाता है तो उसका साया भी उससे दूर भागता है। हां, यही सब हो रहा है। सब मेरा साथ छोड़ गए। मुझसे मिलने आखिर कौन आया?

मेरा जीवन सूख सा गया है। तन्हाई अक्सर मुझपर हंसती है, कहती है,‘‘चलो हमारी दोस्ती लंबी चलेगी। ऐसे कम ही होते हैं जिनके पास इतना वक्त बिताना पड़े। तुम मिले हो, अच्छा है। तुम्हें किसी की तलाश थी और मैं खाली थी। अब सोच रही हूं, यहीं डेरा जमा लूं। मुझे तुम भा रहे हो। तुमसे लगाव हो गया लगता है। चेहरे से, और वैसे भी भले ही लगते हो। तुम प्रसन्न रहोगे तो मैं रुठ जाउंगी। तुम ऐसा नहीं करोगे। मुश्किल से कोई तुम्हारी इतनी कद्र करने की सोच रहा है, उसे दूर नहीं जाने दोगे। मन को छोड़ो, संसार को भूल जाओ। मुझसे नाता जोड़ो। कितना सुकून है मेरे साथ रहने में। कोई तुमसे रिश्ता नहीं रखता। एकदम शांत हो गये हो तुम। नीरसता तुम में समा गयी है। मेरी मानो मुझसे इतनी पक्की मित्रता कर लो कि तुम मुझसे कभी अलग न रह सको। भूलना भी चाहो, तो भूल न सको। विश्वास से कहती हूं, तुम इसपर गौर जरुर करोगे। मैं भी अकेली हूं, तुम भी। इंसानों के साथ रहने का अपना आनंद है। वास्तव में संसार को छूना और मुझे न जानना, ऐसा होता नहीं। मैं अकेलेपन की साथी हूं। तुम्हारा मेरा साथ इतना लंबा रहे कि तुम्हें मुझसे लगाव हो जाए। मैं यही चाहती हूं।’’

-contd.....


-harminder singh