एक कैदी की डायरी -12




केवल मुरझाये चेहरों का सूखा हिस्सा बनने में ही फिलहाल बेहतर मालूम होता है। इसके अलावा इस घुटन में कुछ खास नहीं। कल की बातों को सोचना बेवकूफी लगती है। उनका समय बीत चुका। पुरानी कोई भी चीज हो, वह नयी कभी दिख नहीं सकती। वह हंस नहीं सकती, मुस्करा नहीं सकती, गुनगुना नहीं सकती। हां, अपने साथ घटने वाला तमाशा चुपचाप देख जरुर सकती है।

दूसरों को आपका दर्द मालूम नहीं होता। वे केवल उपहास करते हैं। मुझे चिढ़ाया जाता है। ऐसा कई बार हुआ है। कई कैदियों ने शाम के भोजन के समय मुझसे खींचातानी भी की। मैंने कुछ नहीं कहा। खामोशी कई बार हमें रोकती है। मैं किसी से कुछ कहना नहीं चाहता। मैं उन लोगों से अलग रहता हूं। वैसे मैं अच्छी तरह जानता हूं कि कुछ लोग दूसरों को दुखी करकर सुकून महसूस करते हैं। यह उनका आनंद है।
-to be contd.

-harminder singh