एक कैदी की डायरी -20

जिस दिन न अधिक खुशी हो, न अधिक दुख वह मेरे लिए मिलाजुला है। वैसे आज कई मायने में मैं खुश था क्योंकि मुझे लगा कि सादाब की अम्मी और बहन उससे मिलने आयेंगे। वह लगभग पूरे दिन चुप बैठा रहा। उसकी आदत को देखकर मैं कभी-कभी नहीं कई बार हैरत में पड़ जाता हूं। वह मुझे अनोखा लगता है, पर वह उतना अजीब भी तो नहीं।

मुस्कराने का मायना उसने मुझे बताया। वह शायद मुझे प्रभावित करता है। मैं उसके हौंसले की कद्र करता हूं। वह इतना थक कर भी जीवन से हारा नहीं। मैं यदि उसकी जगह होता तो कब का टुकड़े-टुकड़े हो गया होता। उसने ऐसा नहीं किया।

मैं अब कई बार चहक उठता हूं। मुझे यह बुरा नहीं लगता। हां, पहले ऐसा लगता था। वक्त ने बहुत कुछ तब्दील कर दिया, खुद भी बदल गया। बीती बातें उतनी हृदय को चुभती नहीं। क्या यह सब सादाब की वजह से है? शायद ऐसा हो।

जब से उससे मुलाकात हुई है, मैं पहले के कुछ नीरस तरीकों को छोड़ चुका. मैं चुप रहने को महत्व देता था, अब ऐसा नहीं है। हंसना तो दूर किसी और की मुस्कराहट को भी शत्रु समझता था। लोगों से दूर रहने की कोशिश करता था।

आजकल मेरी सोच में परिवर्तन हो रहा है। मैं बदलता जा रहा हूं। दुनिया को खुशनुमा समझने की बात को मैं नकारता आया था, पर अब नहीं।

मेरा संसार सलाखों के पीछे जरुर है, मैं उसे उसी जगह सुन्दर बनाना चाहता हूं। सादाब मुझे मिल गया है। फिक्र को गंभीरता से न लेने की आदत को मैं अपनाने की कोशिश कर रहा हूं।

मुझे गुस्सा आता है तो मैं उसे शांत करने की कोशिश करता हूं। बहुत सी चीजें आसान नहीं हो सकतीं और हम उनसे अछूते भी नहीं रह पाते। वे हमारे साथ जुड़कर चलती हैं। मैं अकेला नहीं हूं।

क्रोध किसी को भी सुकून नहीं पहुंचाता। कुछ लोगों के अंदर क्षमता होती है कि वह इसे सहन कर जायें। कुछ ऐसे होते हैं जिनकी मजबूरी बन जाता है गुस्सा पीना। कुछ ऐसे हैं जो अपने अंदर के उबाल को काबू नहीं कर पाते। इसका परिणाम बहुत बार उनके हित में नहीं होता।

हम स्वयं को बदलने की कोशिश करते हैं, लेकिन कर नहीं पाते। मैंने क्रोध को शांत करने की कला को सादाब से सीखा। उसने मुझसे कहा था कि वह पहले काफी गुस्सेवाला था। अब वह खुद को उसके वश में नहीं करता। वह कहता है कि उसने प्रण किया है कि वह गुस्सा नहीं करेगा। उसका मानना है कि क्रोध इंसान को बेहतर जीवन जीने से रोकता है।

हम इतना तो मानते हैं कि क्रोध हमारी बुद्धि को प्रभावित करता है। मैंने सादाब से कहा कि तुम इतने शांत कैसे हो सकते हो? वह केवल मुस्कराया। मैंने उसकी मुस्कान को ही उसका उत्तर मान लिया, मगर कुछ समय के लिए।

हमें कभी-कभी कुछ लोगों पर इतना भरोसा हो जाता है कि हम उनकी प्रत्येक बात को सच मान लेते हैं। सादाब पर मैं बहुत अधिक भरोसा करने लगा हूं। इस घनिष्ठता का मतलब तलाशने की कोशिश करना मैं समय बर्बाद करना ही समझता हूं।

अदृश्य डोर जो हमें जोड़े है वह और मजबूत हो रही है। जीवन मानो अब अधूरा उतना नहीं लगता।

सादाब ने कहा कि वह शांत नहीं है। उसका हृदय उथलपुथल कर रहा है। पर उसे पता है कि वह दिमाग से ज्यादा, दिल से कम सोचने लगा है। दिल की धड़कन कभी बढ़ती है, तो कम होकर भी इंसान को परेशान करती है। उसने जीना सीख लिया क्योंकि हालातों से सामना करने की उसे आदत हो गयी। जीवन के सूनेपन को वह छिपा नहीं रहा, बल्कि सूनापन खुद ढकता जा रहा है। मैंने उससे कहा कि मैं ऐसा कर रहा हूं, पर कई बार निराश हो जाता हूं कि मेरी स्थिति बहुत कमजोर इंसान सी हो जाती है।

गुस्सा आता है मुझे अपने पर। धिक्कार आती है। मन करता है कि बस.........।

मैं कहना नहीं चाहता, क्या फायदा? मेरे अंदर ज्वाला की धधक शायद उतनी नहीं। ऊफान का दौर शांत भी तो हो जाता है।

-to be contd....


-Harminder Singh