जीवन जीने का ही नाम है

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हम निराश क्यों हो जाते हैं। हमने अपने आसपास इतने लोगों को देखा है जो हौंसले की ऐसी मिसाल पेश कर रहे हैं कि मन अचंभित हुए बिना रहता नहीं। वे हैं तो हम में से ही लेकिन उनकी दास्तान अद्भुत है।

  जापान के 80 वर्ष के एक बुजुर्ग ने एक मिसाल पेश की है। उन्होंने दुनिया के सबसे ऊंचे और खतरनाक पर्वत शिखर पर पहुंचकर ये जता दिया कि बुढ़ापा कमजोर नहीं है। बुढ़ापा अभी थका नहीं है। उसका हौंसला अभी बाकी है।

  इससे पहले नेपाल के एक वृद्ध ने कीर्तिमान बनाया था लेकिन तब वे पूरे 80 के भी नहीं थे। जानते हैं हम कि एवरेस्ट पर जाना दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती है।

जीवन की डोर कितनी ही बाकी लेकिन जितने समय आपकी सांसें चल रही हैं उन्हें जाया नहीं जाने देना चाहिए। यही जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।

  खुश है बुढ़ापा की जीवन के आखिरी पायदान पर इंसान अभी चुका नहीं है। इंसान अभी कह रहा है कि जिंदगी जितनी भी सही, वह टकराता रहेगा। मर जायेगा अगर ऐसी ही, तो खुदा को क्या बतायेगा।

  मुझे लगता है कि आप उम्र को किसी तराजू में नहीं तोल सकते। और कुछ भी करने की कोई सीमा होती। अगर उम्र बीत रही है तो जीवन का उत्साह खत्म करने के बजाय उसमें कुछ नयापन लाना चाहिए। खुद से ही इतना हासिल कर लेता है इंसान की दूसरों की हिदायतों सलाद की तरह हो सकती हैं। लेकिन एक बात ध्यान रखियेगा कि सलाद के बिना भोजन उतना मजेदार नहीं लगता। जीवन का आनंद इसी में है कि उसे हद तक जिया जाये। इतना कि पता ही न चले कि जीवन खाली है।

  बुढ़ापा चुप नहीं है क्योंकि उसका हौंसला बाकी है। वह चाहता है नयापन, उसकी उम्मीद खुद से अभी छूटी नहीं है। वह उन्मुक्त आकाश का पंछी बनना चाहता है। अपने पर स्वच्छंद नीलेपन में फैलाना चाहता है ताकि अपनी मर्जी का मालिक फिर बन सके इसी उम्मीद के साथ कि जीवन जीने का ही तो नाम है।

  बुढ़ापा चाहता है वक्त की खामोशी को तोड़ना और जिंदगी के उन पलों को मुस्कराते हुए जीना जो उसकी अंतिम विदाई के बाद मानो उसके साथ समाने वाले हैं। ख्वाहिश के समंदर में गोते बहुत लगा लिए। जरुरत है जिंदगी के असली मायने समझने की। आखिरी दिनों में सिलवटों की गहराई से बाहर आने की क्योंकि बुढ़ापा उन्मुक्त है।
-Harminder Singh