![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhCGV6O2oUiGgW78jeqZ1v_jAqLLYfAZOByictUup9EFJwgVi88mj7Lvx3yd9HA3_OtXrsv8Ys7t5S6aqvgTEAEHsfPKrkN_rfPlBMrz8P5rVLrszu4kv6viAUMmPGH9LDqx8048cxIVyi8/s400/old-people-vradhgram18.gif)
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
काकी को लगता है कि उसने जीवन को भरपूर जिया। उसने मुश्किलों को झेला, दुनिया के असल रंगों को करीब से देखा। हर उस चीज को देखा जिनसे जीवन प्रभावित होता है। उसने यह पाया कि बिना मुसीबतों के हल किए आगे नहीं बढ़ा जाता। वक्त का दायरा आज ऐसा है, लेकिन कल बदल जाए, तब क्या हो? तमाम जिंदगी उलझे रहते हैं हम। उलझनें हैं कि मिटने का नाम नहीं लेतीं।
बूढ़ी काकी को देखता हूं तो लगता है जैसे जीवन का सार इन सिलवटों में सिमटा है। झुर्रियां काया को बेजान बनाती हैं, पर यह सब यूं ही नहीं हो गया। संघर्ष के परिणाम किसी को भी थका सकते हैं। जीवन की लंबी लगने वाली लड़ाई अब छोटी मालूम पड़ती है। उम्र ढलने पर योद्धा निहत्था हो जाता है। ऐसा उसकी मजबूरी है क्योंकि जीवन में वक्त की बहुत अहमियत है। समय गुजरने के करीब है और दिन ढलने वाला है। पंछी को अपने घर जाना है।
सभी रसों का स्वाद पाकर, बाद में रसहीनता का आभास होता है। काकी कहती है,‘‘जीवन सुखों और दुखों से भरा है। यहां रंगीनियां एक ओर हैं, उनकी छटा निराली है। यहां रोते-बिलखते-तड़पते लोगों का मेला भी है। स्वाद की अनेक वस्तुएं हैं और आनंद मनाने के साधन भी। सब कुछ तो है हमारे पास।’’
‘‘विभिन्न तरह के जायकों से संसार भरा है और उसमें गोता इंसान लगा रहा है। रस का पान करते-करते जीवन छोटा लगता है क्योंकि ज्यादातर लोग उसे ही आनंद का असली रुप समझ लेते हैं। यह उनकी भूल होती है।
सिलवटें इकट्ठा होने पर अहसास होता है कि इतने स्वाद होते हुए भी जीवन रसहीन है। नीरसता और हताशा का माहौल बहुत कुछ सोचने को विवश करता है। वक्त कई जायके दे जाता है- अनगिनत स्वादों से भरे।
जीवन का मखौल उड़ाने वाले प्राय: अंतिम समय पीछे मुड़कर देखते हैं। तब सारे आनंद विदा ले चुके होते हैं। वे कह चुके होते हैं-‘हमारा साथ यहीं तक था।’ देह को देखकर चौंकना स्वभाविक है। फिर थका-हारा व्यक्ति बीते दिनों की चमकीली रेत को सोचकर मायूस होता है क्योंकि आज उसके हाथ पर रेत को भी शर्म महसूस होती है।’’
मुझे लगने लगा कि काकी जीवन की सच्चाई को धीरे-धीरे ही सही, अपनी पोटली से बाहर निकाल रही है। जीवन यह कहता है कि वह तृप्ति की तलाश में यहां आया था, तलाश अधूरी रही, अतृप्त होकर जा रहा है।
-Harminder Singh