एक कैदी की डायरी- 27

सादाब की नजदीकी एक अलग एहसास कराती है। हम दूसरों से बहुत कुछ सीखते हैं।

मैंने सादाब को बताया था कि मेरा बचपन घिसटता हुआ बीता। कड़वे पलों को मैंने अधिक जिया बजाय मीठे लम्हों के। गलती किसी ओर की थी, भुगती किसी दूसरे ने।

जीवन में उतार-चढ़ावों के समय जिंदगी ही टूटती और जुड़ती है। कोई हमें आधे रास्ते छोड़कर चला जाता है, कोई पूरी राह हमसफर रहता है। शुक्रिया कहने का वक्त कभी मिलता है, कभी नहीं। शायद उपहास घड़ी नहीं देखता।

सादाब के बचपन में भी निराशा जुड़ी थी। वह कहता है कि उसकी मां उसे सीने से चिपका कर रखती थी। उसकी कहानी उसके अब्बा के मरने के बाद खराब हुई थी। सादाब कहता है कि बचपन की मासूमियत का मोल तोला नहीं जा सकता। उस समय की आजादी की कीमत नहीं लगायी जा सकती। आकाश छोटा पड़ जाता है जब एक मां अपने बच्चे को पुचकारती है। वह खुशी असीमित होती है। दुनिया का सबसे बड़ा सुख। इंसानों के साथ ही ऐसा नहीं होता, बल्कि पशु-पक्षियों की चहक भी मधुर हो जाती है।

to be contd....

-Harminder Singh