बूढ़े काका ने मुझसे कहा,‘मैंने तुम्हें कभी किसी दोस्त के साथ नहीं देखा।’
‘मैं दोस्त नहीं बनाता।’ मैंने भोली सूरत बनाकर कहा।
‘तुम कैसे इंसान हो?’ काका को अटपटा लगा। ‘दोस्त नहीं बनाते या दोस्ती तुमसे कोई करना नहीं चाहता।’
मैं क्या जबाव देता। उत्तर तलाश करने में मैं सफल नहीं हो सका इसलिए बिना बोले रहा।
दोस्ती के मायने मेरे लिए पता नहीं किस किस्म के हैं। मुझसे दोस्तों के बारे में कोई यदि पूछता है, मैं बिना जबाव वाला व्यक्ति बन जाता हूं।
‘मुझे देखो, मेरी जिंदगी में इस समय कई लोग हैं जो दोस्त की तरह हैं और जानते हो कुछ तो उससे भी ऊपर। तुमने जीवन में क्या पाया जो एक अच्छा दोस्त हासिल न कर सके।’
‘बूढ़ों से मित्रता भला कौन करना चाहेगा? कौन उनसे प्यार के दो शब्द बांटना चाहेगा? किसे अच्छे लगता है बूढ़ों संग गप्पे हांकना? मगर दुनिया उतनी बुरी भी नहीं। यहां मिल जाता है सब वह जो इंसान के लिए जरुरी है। अब कुछ सूखी रेत में पानी निकालने की कोशश करें तो उनके विषय में क्या कहा जा सकता है।’
‘रामसुख मेरा बचपन का मित्र है। हमने कितना कुछ बांटा। तसल्ली मिली, सुख की अनुभूति हुई। आज वह बीमार रहता है। अपने अंतिम दिनों में है। मैं उससे दिन में एक बार जरुर मिलता हूं। इतना तो है वह अपना दर्द कुछ कम कर लेता है। वह अपनी आखिरी लड़ाई में स्वयं को अकेला महसूस नहीं कर रहा, वरना कब का मर जाता। आज भी एक-आध चुटकुला उसे मैं सुना ही देता हूं। इसी बहाने उसके झुर्रीदार चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। यह होती है दोस्ती, समझ गए न।’
इतना कहकर बूढ़े काका हल्का सा मुस्कराये।
-Harminder Singh