
नारद के स्वर्ग और नरक में घूमने की कथा मुझे अच्छी तरह याद है। उसमें नारद दुविधा में पड़ जाता है कि पृथ्वी से जो लोग मरने के बाद आते हैं उन्हें केवल स्वर्ग या नरक में ही जगह क्यों दी जाती हे जबकि उनके पाप कम या ज्यादा होते हैं। मतलब पाप से है। कम पाप किये तब भी नरक का द्वार आपके लिये खुला है। बिना पाप किये जीवन जिया नहीं जा सकता। मुझे वह याद नहीं कि उन्होंने किस तरह नारद को समझाया।
कई सालों तक दादी मेरे सपने में आती रही। मुझे समझाती रही। शीला का अगला निशाना मैं था। पिताजी की गैर मौजूदगी में वह मुझसे बरतन मंजवाती, कपड़े धुलवाती और मामूली गलती पर थप्पड़ मारती। मैं कमरे में आ जाता। मां की तस्वीर के सामने बहुत देर तक बैठा रहता। आंसू बहाता रहता, उससे बातें करता रहता। कब आंख लग जाती पता ही नहीं चलता। तंग आ गया था मैं उस स्त्री से। उसका बेटा अपने पूरे रौब में रहता। शीला को मालूम था कि पिताजी उसके वश में हैं। वह जैसा चाहेगी, वैसा ही होगा और हो भी ऐसा ही रहा था।
to be contd...
-Harminder Singh