एक वृद्धा गाड़ी से उतरकर शीशी में पानी भरने के लिए उतरी तो वह व्यक्ति सीटी बजाकर उससे कहने लगा,‘जल्दी कर बुढ़िया, गाड़ी चलने वाली है। चल जा डिब्बे में।’...... |
वह व्यक्ति मानसिक रुप से स्वस्थ नहीं था। उसका नाम मैं जान नहीं सका। गले में लटकी सुराही जो प्लास्टिक की थी, उसे ओर भी अजीब बना रही थी। ट्रेन रुकने के साथ ही वह प्लेटफार्म पर पता नहीं कहां से अवतरित हुआ। हर किसी का ध्यान उसकी ओर था। वर्दी होमगार्ड वाली थी। शर्ट के बटन खुले थे, बैल्ट बड़ी नजाकत से बंधी थी। उसका सिर बिना वालों का था और चेहरा भी सफाचट।
वह हर किसी से भारी-भरकम मुस्कराहट से हाथ मिलाता और उनका हल्का हालचाल पूछता जो बिल्कुल भी व्यवहारिक नहीं था। वह प्रसन्न था। कुछ लड़के जो उसके आसपास मंडरा रहे थे उससे मजाक करने में जुट गए। वे पूछते कुछ, वह बताता कुछ। यह सिलसिला काफी समय तक जारी रहा।
ट्रेन जब रुकी रही तो वह सीटी बजाकर उसे चलने का इशारा करता, पर उसकी सुनता कौन था। वह हास्य का पात्र जरुर बना था वहां मौजूद लोगों के लिए। साथ में उन्हें हैरानी अलग से हो रही थी।
वह रेलगाड़ी चलने पर उसमें सवार भी हो गया। अगला स्टेशन आने पर वह उतर गया। एक वृद्धा गाड़ी से उतरकर शीशी में पानी भरने के लिए उतरी तो वह व्यक्ति सीटी बजाकर उससे कहने लगा,‘जल्दी कर बुढ़िया, गाड़ी चलने वाली है। चल जा डिब्बे में।’
वृद्धा ने एकबारगी उसकी ओर देखा। पर तुरंत ही हल्का मुंह सिकोड़ कर पानी भरने लगी। वह सीटी बजाकर पता नहीं क्या-क्या बड़बड़ाता रहा। वृद्धा ने फिर उसकी तरफ घूरकर देखा, तो वह दांत दिखाकर कुछ कदम पीछे हटा। उसने सीटी बजायी, तो वृद्धा जोर से बोली,‘तू ऐसे नहीं मानेगा, चल हट। ....और कहीं बजा सीटी।’
वह व्यक्ति गर्दन घुमाता हुआ वहां से आगे चला गया। मैं उसे देखता रहा। ट्रेन के चालक से पता नहीं क्या-क्या कह रहा था। चालक उसकी ओर हैरानी से देखकर मुस्करा रहा था।
किसी ने बताया कि वह रोज इसी तरह प्लेटफार्म पर सीटी बजाता घूमता है। एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन तक उसका आना-जाना रहता है। वह सामान्य नहीं है। शायद किसी हादसे या अन्य वजह से वह ऐसा है।
मैंने सोचा कि हम प्रतिदिन कितनी टेंशनों से घिरे रहते हैं। वह हमारी तरह नहीं था, लेकिन बेफिक्र था। हंसता हुआ चेहरा जिसपर चमक के कुछ छींटे भी शामिल थे, इसी उम्मीद के साथ कि आखिर भगवान ने उसपर इतना रहम तो किया।
-Harminder Singh