एक कैदी की डायरी -35

jail diary, kaidi ki diaryपिताजी को शीला की असलियत एक दिन मालूम पड़ गयी। उसका पहला पति घर आ पहुंचा। शीला उससे जेल में मिलने भी जाती रहती थी। मैंने एक अजनबी को यों शीला के साथ ठहाके लगाते देखा तो हैरान रह गया। वह इतना तो पिताजी के साथ भी हंसी न थी। मुझे बताया कि वह अनजान व्यक्ति शीला का रिश्तेदार है।

शाम के समय शीला ने कमरे के द्वार बंद कर लिए। अंदर खुसरपुसर शुरु हो गयी। वह व्यक्ति शीला से कह रहा था कि उनका काम बन गया। शीला ने कहा कि मेरे पिताजी को कभी पता नहीं चल सकेगा। मैं किवाड़ की दरार में कान लगाकर सुन रहा था। अचानक पिताजी आ गये। उन्होंने मेरी ओर गुस्से भरी नजरों से देखा। मैंने उन्हें अंगुली से चुप रहने का इशारा किया। पता नहीं उस दिन मैं उनसे बिल्कुल भयभीत नहीं था। उन्होंने शीला और उसके पति की बातों को सुना।

पिताजी का पारा चढ़ चुका था। गुस्से में वे पूरे तन गये थे। मैं एक कोने में खड़ा था। पिताजी ने जो सुना, उसपर उन्हें यकीन नहीं हो रहा था। उन्होंने दरवाजे को तेज थाप के साथा खोल दिया। शीला और उसका पति हक्के-बक्के रह गये। दोनों पलंग पर आमने-सामने बैठे थे। पिताजी तेज कदमों से शीला के पास पहुंचे। उसे गाल पर जोर का थप्पड़ जड़ दिया। उन्होंने शीला को भद्दी गाली भी दी। उसका पति पिताजी से उलझ पड़ा।

मैं दरवाजे के पास खड़ा था। दो व्यक्तियों के बीच कुछ देर पहले कुछ भी नहीं था और वे एक-दूसरे से अनजान थे, लेकिन अब खून के प्यासे हो गए। पिताजी ने शीला के पति को पलंग से खींच की फर्श पर गिरा दिया। वह मुंह के बल गिरा। उसके मुंह से खून बहने लगा। उसने पिताजी पर वार किया। उन्होंने भी उसका जबाव दिया।

शीला भयभीत हो गयी थी। उसकी चीख निकल गयी। वह दोनों को रोकना चाह रही थी, मगर ऐसा कर न सकी।

मैं खड़ा-खड़ा आंसू टपका रहा था। मैं भी सहम गया था। मेरे हृदय की धड़कन तेज होती जा रही थी। उधर वह आदमी कहां हार मानने वाला था। हालांकि उसका चेहरा प्रहारों की चोट से बुरी तरह सूज चुका था, लेकिन वह पीछे हटने को तैयार नहीं था।

इतने में शीला का बेटा दौड़ा आया और अपनी मां से लिपट गया। शीला ने उसके सिर को दोनों ओर से पकड़ लिया और जोर से सुबकी।

एक महिला के लिए दो पुरुष आपस में गुत्थमगुत्था थे। एक उसका पुराना पति था और दूसरा होने वाला। हां, पिताजी कुछ दिनों में शीला से विवाह करने वाले थे।

काफी समय से परायी स्त्री को और वह भी एक बच्चे के साथ, को देखकर मोहल्ले में तरह-तरह की अफवाहें उड़ रही थीं। पड़ोस में रहने वाला बल्लू पान वाला स्कूल जाते मुझे टोकता और कुछ न कुछ कहता। स्कूल में भी बच्चे मुझे चिढ़ाते। कई बार मुझे गुस्सा आ जाता। रोज-रोज के तानों से मैं तंग आ गया था।

पास के मकान वाली कई औरतें शाम को एकत्र होतीं तो चर्चा हमारे घर की ही होती। मजाक बनकर रह गया था हमारा घर और मैं भी।

पिताजी ने शीला से मंदिर में विधिवत विवाह करने का निश्चय किया था। शीला ने पहले टालना चाहा, मगर न चाहकर भी उसे पिताजी की बात माननी पड़ी।

जारी है.....

-Harminder Singh