तमाशा बन गया मैं
समय गुजर गया,
अकेला हूं मैं,
खोज रहा स्वयं को,
ठहर कर चुपचाप,
बंद आंखों को किए.
स्याह पलों का रुखापन,
खुरदरा कर गया कुछ,
इन कांपती उंगलियों में,
सजवाट नहीं रही बाकी.
बिखरती जिंदगी के टुकड़े,
छिन्न-भिन्न हुए,
तमाशा सिर्फ तमाशा
बन रह गया मैं,
कोने में पड़ा सूखा पत्ता,
और मैं,
खड़खड़ाता वह भी है,
लेकिन मृत है।
-Harminder Singh