एक कैदी की डायरी -44

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कैदखाने में नीरसता के सिवा कुछ नहीं। वही सलाखे हैं जिनपर जंग लगा है, फिर भी वे स्थिर हैं। उनकी जगह स्थायी है जहां वे इंसानों को अपने लोहे के कारण कैद किए हैं। कैदी सलाखों से बाहर देखता है और सलाखें उसे।

बुझे चेहरों के अनगिनत इंसान मेरी तरह बंधन से मुक्त होना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि समय को काश वे अपनी मुट्ठी में कर पाते तो कितना आसान होता। लेकिन जैसी कल्पना की जाती है वैसा मुश्किल से ही होता है। इसे मैं तुक्का मान सकता हूं। निशाना लगा तो लगा, वरना चूक पक्की।

किस्मत को बहुत से लोग मानते हैं। मैंने किस्मत के हाथों बहुत कुछ खोया है, शायद पाया उतना नहीं। वो कहते हैं न -किस्मत खराब है तो सब खराब। किस्मत खेल खेलती है। खेल में जीत-हार होना जायज है। तब आशा और निराशा के बारे में सोचने में कोई बुराई नहीं। मैंने किस्मत को बदलते हुए देखा है। बचपन से लेकर आजतक मेरे जीवन में कितनी त्रासदियां हो चुकीं। मैं अभी तक जूझ रहा हूं। मुश्किलें आड़े आती रहीं, मैं चलता रहा। जिंदगी के दोराहे पर गमों और छुटपुट खुशियों से मुलाकात होती रही। रास्तों को वक्त ने आड़ा-तिरछा किया। अब किस्मत ने मुझे इन सलाखों के पीछे रहने को मजबूर किया। आगे जाने क्या खेल दिखायेगा मेरा नसीब?

जेल की जिंदगी में अजीब सी थकावट है जो कभी कम, कभी ज्यादा होती रहती है। ध्यान बंटाने को ऐसा कुछ है नहीं जो कुछ पल का सुकून दे सके। लाजो शायद मेरे जेहन से कभी दूर नहीं होगी। वह एक सहारे की तरह है। उसकी यादों के सहारे मेरे दिन कट रहे हैं।

लक्ष्मी के जाने के बाद मैं खुद को बिल्कुल अकेला समझ रहा था। तब लाजो ने मेरा साथ दिया। मैं इतना जानता हूं कि मेरे बिगड़े वक्त में कोई न कोई ऐसा मिला जिसने मुझे संभाला। मेरी नानी लाजो को बहुत प्यार करती थी। वह उसे अपनी बेटी की तरह मानती थी। जब वह घर आती तो नानी उसका हालचाल पूछती। नानी के पास लाजो घंटों बैठी रहती। उसके पास बातों का इतना बड़ा ढेर होता कि वह बोलती रहती और नानी ध्यान से सुनती। नानी उसे बीच-बीच में टोकती और कहती,‘बेटी इतना मत बोला कर।’ लाजो कहां मानती, वह नानी के दोनों हाथों को थाम कर बोल देती,‘आपके लिए है यह सब। ताकि आप बोर न हो सको। एक आपसे ही मैं सबकुछ बताती हूं।’

नानी उसके बालों को प्रेम से सहलाने लगती। लाजो सिर नीचे झुका लेती। मैं अक्सर उनकी बातों को रस लेकर सुनता रहता। कई बार नानी ने मुझसे कहा कि मैं उनके बीच में क्या कर रहा हूं। मैं भी सोचता कि उनके पास बैठा मैं उनकी बातें क्यों सुन रहा हूं। लाजो को मैंने किसी से इतना बतियाते नहीं सुना। वह नानी के साथ इतना क्यों बोलती थी? मुझसे भी कम शब्द कहती। शायद वह नानी की उम्र को पहचानती थी। उनकी भावनाओं को जानती थी। वह एक वृद्धा को महसूस नहीं होने देना चाहती थी कि वह उम्र के आखिरी पड़ाव पर है।

जारी है....

-Harminder Singh

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