जीवन संध्या में एकाकी क्यों?
हमारे बुजुर्ग अपनों की उपेक्षा के शिकार हैं और जीवन के आखिरी दिनों में मायूस भी हैं..
अधिक पढ़ें »हमारे बुजुर्ग अपनों की उपेक्षा के शिकार हैं और जीवन के आखिरी दिनों में मायूस भी हैं..
अधिक पढ़ें »धुंधले शब्द जोड़-तोड़कर अपने बल पर किस्मत की रचना करना उम्रदराजों के लिए कोई नया नहीं.
अधिक पढ़ें »बूढ़े काका ने सुबह चार बजे मुझे झिंझोड़ कर उठाया। सबसे हैरानी वाली बात यह रही कि रात में समय पर उठने का वादा करने के बाद भी मैं उठ नहीं प...
अधिक पढ़ें »किनारे पर खड़ा होकर जिंदगी की परछाईयों को निहार रहा हूं. बुढ़ापे में तो परछाईयां भी काटने को दौड़ती हैं -ऐसा सभी कहते सुने हैं. मैं भी थोड़ा ...
अधिक पढ़ें »उम्रदराज दोस्त खूब ठहाका लगाते हैं। उनकी हंसी भी जवानों की तरह ही सुकून पहुंचाती है। वे भी उस समय खुद को भूल जाते हैं। बुढ़ापा हालांकि उ...
अधिक पढ़ें »‘नैनहु नीर बहै तन खीना, केस भये दुध बानी, रुंधा कंठ सबद नहीं उचरै, अब क्या करै परानी।’ भक्त कवि भीखन ने इन दो पंक्तियों में वृद्धावस्थ...
अधिक पढ़ें »परिवार के सदस्य उम्रदराजों के लिए वक्त निकालें तो बुढ़ापा कम झंझट और तनाव के कट सकता है. हम जानते हैं कि वृद्धावस्था वह मौसम है जब पतछड़ होता ...
अधिक पढ़ें »बुढ़ापे की कहानी हैरान कर देती है। यहां दशा ऐसी हो जाती है चीजें लगभग अपने हाथ में नहीं रहतीं। छड़ी का सहारा लिए जब उस वृद्ध व्यक्ति को मै...
अधिक पढ़ें »आइना सामने है। उसमें दिखता मैं, और चारों ओर गहरे काले घेरे। चेहरे पर अनेक आड़ी-तिरछी लकीरें चीख-चीख कर कहती हैं कि बूढ़े हो गये हो तुम। शरी...
अधिक पढ़ें »सफर के दौरान बहुत कम लोगों से हम बात कर पाते हैं। अक्सर हमें फिक्र गंतव्य तक पहुंचने की अधिक रहती है। मुझे पिछले दिनों एक बुजुर्ग मिले जि...
अधिक पढ़ें »सुबह बूढ़े काका से चाय पर फिर मुलाकात हो गयी। वे बोले,‘जिंदगी नरम लगती है, कभी चाय के प्याले से उड़ती भाप।’ उन्होंने कहा,‘मुझे खुद से अने...
अधिक पढ़ें »हूं मैं कमजोर, लेकिन मजबूती से खड़ा हूं, ढहने की चाह नहीं, पर भरभराकर भी गिरा हूं, मैं हताशा को अचरज से देखता आया हूं, जिंदगी की मुस...
अधिक पढ़ें »उम्मीदों के मचान पर मैं बैठा हूं। उम्मीद है मुझे वक्त से कि वह इतना बुरा नहीं रहेगा। बदलेगा वक्त और मेरा जीवन भी। यह मेरे लिए राहत होगी। ऐसी...
अधिक पढ़ें »खामोशी है, मद्धिम उजाला, वहां बैठा ओट में कोई, बुजुर्ग अकेला, कमर टिकाये तने से, हताश दिख रहा है, बोल कुछ बोले क्यों, सूरज छिप रहा...
अधिक पढ़ें »गोता लगाती जिंदगी में बुढ़ापा सब देख रहा है। नजरें धुंधली हैं, लेकिन बूढ़ी आंखें पढ़ रही हैं जिंदगी का तानाबाना और चहकती हुई जिंदगी के रेशो...
अधिक पढ़ें »कुछ लोग केवल मौत का इंतज़ार करते हैं यह सोच कर कि जिंदगी तो बस अब ख़त्म। सेवा से बाहर यानी अब किसी काम के नहीं रहे। घर में भी इज़्ज़त थोड़ी घट ही...
अधिक पढ़ें »उम्र बढ़ने के साथ ही जोड़ों के दर्द की समस्या अधिकतर उम्रदराजों में देखने को मिलती है। मैं उस समय अधिक हैरानी करता हूं जब कई नौजवान भ...
अधिक पढ़ें »मैं हमेशा सोचता हूं कि हम जद्दोजहद क्यों करते हैं। दिन-रात भागदौड़ करते हैं। नये लोग मिलते हैं, कुछ बिछड़ते हैं। बातें हजार और चुप्पी ड...
अधिक पढ़ें »वक्त दौड़ते एहसासों की तरह है। दौड़ जो मुमकिन है, नहीं है। मुश्किल दौर, विषादों की चटाई के कोने जो घिसटते ख्वाबों की याद दिलाते हैं। बेशक...
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