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रुंधा कंठ सबद नहीं उचरै, अब क्या करै परानी

Friday, June 26, 2015

‘नैनहु नीर बहै तन खीना, केस भये दुध बानी, रुंधा कंठ सबद नहीं उचरै, अब क्या करै परानी।’ भक्त कवि भीखन ने इन दो पंक्तियों में वृद्धावस्थ...

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वृद्धावस्था में बोलें प्यार की भाषा

Saturday, June 13, 2015

परिवार के सदस्य उम्रदराजों के लिए वक्त निकालें तो बुढ़ापा कम झंझट और तनाव के कट सकता है. हम जानते हैं कि वृद्धावस्था वह मौसम है जब पतछड़ होता ...

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