
शुक्रवार के दिन सरदी बहुत थी। रास्ते में मानो हाड कंपा देने वाली ठंड थी। मेरे एक साथी को ठिठुरन के कारण बुरी तरह जुकाम हो गया। किसी ने मफलर लपेट कर खुद को बचाया। कपड़ों पर कपड़े पहनकर वजन में किसी ने किलो-भर इजाफा किया। किसी का कोट मुझे इतना भाया कि मैं उस इंसान को ही महान समझ बैठा।
चाय वही तीन समय एक कप -बिना बिस्कुट, बगैरह-बगैरह।
किसी को इतनी टेंशन थी कि सरदी यह सोचकर उनके पास से भागी कि कहीं वह अवसाद में न चली जाए।
एक भाई साहब न सरदी देखते न गर्मी, सिर्फ चिल्लाते हैं इसी उम्मीद के साथ कि ‘सब ठीक हो जाएगा।’
उनसे शर्त लगायी जायेगी कि ‘हिम्मत है तो चिल्लाकर सरदी को भगाओ।’
मालूम है शर्त मैं ही जीतूंगा क्योंकि सरदी इंसान थोड़े ही है।
-Harminder Singh
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