जिंदादिली की बात अलग है

हम दोनों ने करीब के एक रेस्टोरेंट में ठंडी काफी का आनंद लिया। उसने चिप्स भी आर्डर कर दिये। आधा घंटा बातों का सिलसिला जारी रहा। अपनी पत्नि की एक आदत का सुभाष ने जिक्र किया कि वह दिनभर काम करती है। नाश्ता से लेकर डिनर तक उसे फुर्सत नहीं। दो बच्चों की जिम्मेदारी जो नटखट होने पर गर्व महसूस करते हैं। वह कभी महसूस नहीं होने देती कि इतनी जिम्मेदारियां का उसपर बोझ है। महिलायें हो तो उसकी पत्नि जैसी जिनके बूते कोई भी परिवार सुखी परिवार बन सकता है। मुझे अपनी जीवन संगिनी का ख्याल आ गया जो अभी है नहीं।

सुभाष के पास फुर्सत के लम्हे कम ही होते हैं। जिंदगी उसने व्यस्त कर ली। मगर वक्त-वक्त पर उसके मजाक जारी रहते हैं। जिंदादिली की मिसाल उसे कहा जा सकता है। तभी उसकी तोंद का आकार मुझसे ज्यादा है- मामूली अंतर है। वजन में वह मुझसे सिर्फ 8 किलो अधिक है। हाल में मेरा वजन 65 था।

परिवार के साथ होना एक सुखद अनुभव होता है। यह हर किसी के लिए काम के पल हैं। जीवन में खुशी और सेहत के लिए परिवार को कारगार माना गया है।

रेस्टारेंट का मालिक महेश मुस्कान के साथ रहता है। उसका बेटा और पत्नि दोनों उसका साथ बखूबी निभा रहे हैं। सुभाष न सही लेकिन मालिक की तोंद का आकार बहुत है। वह संतुष्ट है। सुभाष उसकी तोंद को देखकर अपनी हंसी नहीं रोक पाता। महेश जानता है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा। वह कभी-कभी सुभाष से कहता है -‘आना यहीं होगा भाई। तुम्हारे भी ढंग देखकर लगता है, देर है अंधेर नहीं।’ इसके बाद मेरी हंसी छूट पड़ती है और सुभाष दौड़कर महेश को गले लगा लेता है। वह उसे उठाने की कोशिश भी करता है, लेकिन हर बार की तरह नाकाम रहता है।

यहां तीन लोगों की छोटी कहानी का जिक्र किया। कहानी सबकी अलग है लेकिन मुस्कान एक सी। यही वे पल हैं जब हम एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं। ये पल हैं जब जिंदगी अपनी खूबसूरती बिखेर रही होती है। तब हम एहसास कर रहे होते हैं कि सूकून कितना अच्छा होता है। यही है वह जिसकी तलाश हमें रहती है। ....और हमारी जिंदादिली कायम रहती है।  

-harminder singh

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