चकोतरा

चकोतरा
चकोतरा का पौधा पेड़ की शक्ल ले चुका है। अभी उसकी स्थिति फलों को संभालने की पूरी तरह नहीं, लेकिन वह कोशिश कर रहा है। हमने उसे करीब के आम के पेड़ से बांध कर गिरने से बचाया हुआ है। आम का पेड़ दुर्लभ जाति का है जिसपर अभी फल आने बाकी हैं।

चकोतरा पिछले साल से फल दे रहा है। फल पिछले साल भी भारी संख्या में आये थे। इस बार संख्या पहले से अधिक है। यह फल किसी को भी भा सकता है क्योंकि पकने के बाद इसका स्वाद बेहतरीन होता है। खट्ठा-मीठा होने के कारण इसका स्वाद अनोखा है। आकार में खरबूजे की तरह हो जाता है। मौसमी की तरह जूस निकाला जा सकता है। सबसे मजेदार बात यह है कि चकोतरा लद कर आता है। पेड़ झुक जाता है फलों से।

chakotra

पिछले साल बंदरों ने कई फलों को क्षतिग्रस्त कर दिया था। मुझे पहले से ही मालूम था कि उनकी दाल नहीं गलेगी, नुकसान फलों का हुआ। बंदरों को मायूसी हाथ लगी। एक-दो फल तोड़े लेकिन कुतरने के बाद उनका जरुर मुंह कड़वा हो गया होगा। तबतक फल पके नहीं थे।

रास्ते में आते-जाते हम चकोतरे के पेड़ के करीब से गुजरते हैं। कई बार लटके फल सिर से टकरा जाते हैं। उन्हें हम ‘झूलते फल’ भी कहते हैं। जिनकी लंबाई 6 फिट के करीब या उससे ज्यादा है उन्हें झुककर निकलना पड़ता है।

मैं दरवाजे के पास एक बोर्ड टांगने की सोच रहा हूं जिसपर साफ अक्षरों में लिखा होगा:
‘‘कृपया सिर बचाकर निकलें, आगे चकोतरा है।’’

-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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