दिन तेजी से गुजरते हैं। जुलाई बहुत तेजी से गायब हो गया। इसी तरह साल आधे से ज्यादा हो गया। रक्षाबंधन आ रहा है। फिर 15 अगस्त आ जायेगी। तब महीना आधा हो जायेगा मतलब उसके पूरा होने में बचेंगे सिर्फ 15 दिन।
लोग कहते हैं कि 20 तारीख के बाद महीना तेजी से गुजरता है। कब 1 तारीख आ जाती है पता नहीं चलता। यह तेजी है क्या? इस तेजी से क्या हमारे काम करने के तरीके पर असर पड़ता है? क्या हम ज्यादा काम करते हैं या सुस्त पड़ जाते हैं?
पहला सप्ताह आराम से गुजरता है। दूसरे सप्ताह में सोचते हैं कि अभी महीना आधा हुआ है। जब तिथि नजदीक आती है तो हम भागदौड़ शुरु कर देते हैं। जो काम पहले नहीं निपटाया जाता वह बाद में निपटाते हैं। इस हबड़-तबड़ में कभी-कभी काम गड़बड़ा भी जाता है। हम सोचते हैं। अगली बार समय से काम करने का दम भरते हैं। एक तरह से शपथ लेते हैं।
नयी शुरुआत होती है। हम फिर बेफिक्र हो जाते हैं। काम को नजरअंदाज करते हैं। ऐन वक्त पर हमें याद आता है कि समय कम है। भागते हैं, रोते हैं, चिल्लाते हैं, बुरी तरह परेशान हो जाते हैं। गलती किसी की नहीं होती। जिम्मेदार हम होते हैं। वक्त की कीमत को न समझना हमारे लिए किसी भी समय समस्या पैदा कर सकता है। ऐसे में वक्त के साथ ताल से ताल मिलाकर चलने वाले ही तरक्की करते हैं।
उपदेश मैंने काफी दिये हैं। लोगों को समझाया भी है। मगर मैं स्वयं समय की पाबंदी को कई बार नजरअंदाज कर चुका हूं। उसकी कीमत मैंने चुकायी है। इंसान हूं न, फितरत ही ऐसी है। गलतियां करते-करते जाने कितने सबक सीख लिये। पर क्या सबक याद रहते हैं जिंदगी भर!
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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