विचारों की खेती की जाती है

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बूढ़ी काकी कहती है-‘विचार इंसान के मन में उचरते रहते हैं। वे तैरते हैं, गोता लगाते हैं। उछलते हैं, कूदते हैं। उनका विचरण जारी रहता है। इंसान का मन उसे उन्नत और खराब विचार प्रदान करता है। यह इंसान पर निर्भर करता है वह उनका चुनाव किस तरह से करे। वह चुनता है और समाज में विचारों को दिशा मिलती है। दिशा से समाज बदलता है-अच्छाई की ओर या बुराई की ओर।’

‘विचार हमें उत्साहित करते हैं ताकि हम कुछ नया सोचते रहें। इसी से जीवन में नया संचार होता है। जैसा मैंने पहले कहा कि यह हम पर निर्भर करता है विचारों को लागू कैसे करें। यह उसी तरह है जैसे फल का बीज रोपना है या कांटों वाला पौधा। सही मायने में विचारों की जमीन हम स्वयं तैयार करते हैं। हां, विचारों की खेती की जाती है। जैसा बोओगे वैसा फल पाओगे। जमीन अपनी है, फैसला हमारा।’

-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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