अस्थाना साहेब



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हमारे शहर के सिटी इंटर कालेज में अस्थाना साहेब हमें गणित और अंग्रेजी पढ़ाते थे। वे बहुत ही अनुशासन पसन्द, कर्तव्यनिष्ठ और हरदिल अजीज थे। उन्होंने शादी नहीं की थी। गरीब प्रतिभाशाली बच्चों को अपने घर रखकर उन्हें न सिर्फ मुफ्त पढ़ाते थे बल्कि उनका सारा खर्च भी वहन करते थे। 

कुछ अमीर बच्चों को भी वे ट्यूशन शुल्क के साथ पढ़ाते थे। बहुत सालों तक यह सिलसिला चल आ रहा था। उनसे कृपा पाये और उन्हें श्रद्धा से पूजने वालों की संख्या शहर और बाहर बहुत अधिक थी।

वे शाम 7 से 8 के बीच शहर में घूमने निकलते और कोई भी छात्र उन्हें घूमता या आवारागर्दी करता दिख जाता उसे वहीं पकड़ सवाल-जवाब करते। सन्तुष्ट न होने पर एक-दो बेंत वहीं जड़ देते और फिर पूरी सजा अगले दिन क्लास में। कई-कई छड़ियाँ टूट जातीं पर अस्थाना साहेब रुकने का नाम न लेते।

लगातार बोलते रहते-‘बाबूजी मटरगश्ती करेंगे। आवारागर्दी करेंगे। फिर करोगे, बोलो फिर करोगे।’ बार बार माफी मंगवा के ही शांत होते। फिर पूरी कक्षा से पूछते कि आप लोगों ने क्या सीखा। अब कोई गलती नहीं करेगा। 

उस जमाने में अभिभावक गुरु से कोई सवाल नहीं करते थे और उनका पूरा सम्मान करते थे। अतः पिटने के बाद बच्चे घर पर नहीं बताते थे वर्ना और पिटेंगे।

एक दिन घर पर अचानक मेहमान आये। मेरी मां ने मुझे चवन्नी देकर दही लाने बाजार जाने को कहा। हलवाई की दुकान से चवन्नी का दही जो उसने मिट्टी के कुल्हड़ में दिया लेकर जैसे ही मैं पलटा सामने अस्थाना साहेब दिख गये।

डर और घबराहट से मेरे हाथ से दही का कुल्हड़ जमीन पर गिर कर टूट गया और दही बिखर गया। देखते ही अस्थाना साहेब मेरे पास आये और पूरी बात पूछी। जब मैंने बताया तो उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरा और कहा-‘अरे भाई मैं आवारागर्दी के लिये मना करता हूं। घर के काम के लिये थोड़े ही। घर का काम तो करना चाहिये।’

उन्होंने अपने पास से मुझे दही खरीद कर दिया और घर जाने को कहा।

दूसरी घटना मुझे याद आती है। मुझे आलू लेने भेजा गया। मैं बाजार में आलू ढेर से आलू चुन कर थैली में भरने में व्यस्त था कि किसी ने मेरे सिर को पीछे से छुआ। मैंने बिना पीछे देखे वो हाथ अपने हाथ से झटक कर हटा दिया। फिर उस हाथ ने दोबारा छुआ। मैंने फिर हटा दिया। मैंने सोचा कोई दोस्त है जो शरारत कर रहा है।

जब तीसरी बार वो हाथ मेरे सिर पर आया। मैंने मोटी सी गाली दी और गुस्से से उठ कर पलटा। पर वहां अस्थाना साहेब मुस्करा रहे थे। डर के मारे मेरा बुरा हाल था।

वे हंसे। बोले-‘भाई गाली देने से पहले पलट कर देख लिया करो। मेरी जगह तुम्हारे पिताजी, बड़े भाई या कोई भी हो सकता था।’ वे हंसते हुये चले गये।

तीसरी घटना बहुत मजेदार है। पढ़ाई के बाद नौकरी की शुरुआत हो गयी थी। जब शहर में आता उनसे जरूर मिलता। तभी मालूम पड़ा कि एक दिन उन्होंने एक ऐसे लड़के की पिटाई कर दी जो दबंगों के परिवार से था।

अगले ही दिन 10 से 12 लोग उन्हें मारने कालेज पहुंच गये। जैसे ही यह खबर शहर में फैली हजारों की संख्या में उनके पूर्व छात्र जिसे जो हथियार मिला उसे लेकर वहां पहुंच गये। हमलावर उन्हें देखते ही भाग खड़े हुये।

ऐसी लोकप्रियता थी हमारे गुरु अस्थाना साहेब की। आज भी वे पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ अनगिनित लोगों के मन मस्तिष्क में बसते हैं।

हजारों हजार नमन उन्हें!!

-अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव.
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