कहा तो यह जाता है कि अशिक्षित लोग ढोंगी और पाखंडी साधु-संतों के चंगुल में फंस जाते हैं लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं। आज के वैज्ञानिक युग में टीवी और मीडिया के बहुत से साधनों का जितना प्रसार हुआ है उसी के साथ पोंगा-पंथी धार्मिक ढकोसले बाजी का प्रचार प्रसार इतना बढ़ गया है कि हमारे देश में भगवानों की भीड़ लग गयी है। आयेदिन नये-नये साधु-सन्यासी, भगवान के अवतार और साक्षत नारायण उत्पन्न हो गये हैं।
टीवी चैनलों पर भी न जाने कितने महापुरुष और संत आशीर्वाद देकर संसार विशेषकर भारत भूमि पर स्वर्गावतरण का उद्घोष कर रहे हैं। दुख, दर्द और समस्याओं से ग्रस्त लोग इन भगवानों के दरबारों में धन वर्षा कर मनोकामनायें पूरी होने की इच्छायें पाले हैं।
इन तथाकथित पाखंडी भगवानों का जब किसी घटना के बाद भांडाफोड़ होता है तो इनकी हालत आसाराम बापू और उनके बेटे तथा रामपाल जैसी हो जाती है। कानून के डंडे के आगे सारे चमत्कार और दैनिक सिद्धियां पल भर में रफूचक्कर हो जाती हैं। कहावत है ‘जो पकड़ा गया चोर, जो नहीं पकड़ा गया साद।’ यदि ईमानदारी से भारत में अड्डे जमाये बैठे जगह-जगह पूजा करा रहे तथाकथित महापुरुषों की गुप्त जांच की जाये तो इनमें बहुत से ठग, अय्याश और बड़े अपराधी निकलेंगे। बहुत से आश्रमों और मठाधीशों के अड्डों से अवैध असलहे बरामद हो सकते हैं।
कितनी मजेदार बात है कि सबसे अधिक दुख दूर करने वाले, गरीबी दूर कर धन की वर्षा करने वाले, बीमारी दूर कर निरोगता प्रदान करने वाले तथा हर संकट से बचाने वाले भगवानों का जमावड़ा भारत में जगह-जगह है और लोग इस तरह के भगवानों तथा पीर, फकीरों के पास भागे भी फिरते हैं, परंतु पिफर भी ऊपर लिखी सारी समस्यायें सबसे अधिक यहीं हैं तथा घटने के बजाये और बढ़ रही हैं। यह और भी मजेदार बात है कि इस तरह के भगवानों की दुकानदारी और भी तेजी पकड़ रही बल्कि नये-नये ब्रांड के अवतार पैदा हो रहे हैं।
सतयुग, द्वापर और त्रेता युगों में तो संत लोग बिना सिले अंगोछा या लंगोटी या लुंगी आदि में ही गुजारा करते थे।
आजकल भी कुछ इसी तरह की वर्दी धारण करते हैं लेकिन अब यह पहनावे का भी खास प्रतिबंध नहीं। कोट-पैंट, सूट-बूट में भी कई भगवान देखे जा सकते हैं। ठीक भी है। वह भगवान ही क्या जो किसी सीमा में बंधा हो!
वातानुकूलित भवन और वातानुकूलित कारों में जिनका जीवन व्यतीत हो रहा है, ऐसे लोगों को संत मानने वालों पर ही तरस आता है। इसी के साथ जो उन्हें भगवान मानते हों तो उनकी सोच का आकलन लगाना और आसान है।
हमारे आधुनिक संत अथाह संपत्तियों के स्वामी बने बैठे हैं। राजनैतिक संगठनों में घुसपैठ करके अपना प्रभाव कायम रखते हैं।
सभी जानते हैं कि उत्तराखंड के सतपाल महाराज कांग्रेसी सत्ता में वर्षों मंत्रीपद का स्वाद लेते रहे। बाद में हवा का रुख बदलता देख दूसरी ओर आ गये। बाबा रामदेव भाजपा का समर्थन कर आयुर्वेदिक दवाओं का व्यापार कर रहे हैं। कई साधिवयां सत्ता सुख भोग रही हैं।
कई संत प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप से किसी न किसी मजबूत नेता का सहारा लेते रहते हैं जबकि कई नेता बहुत से संतों का आशीर्वाद चुनावों के दौरान इसलिए लेते हैं ताकि उनके समर्थक उन्हें वोट दें। हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सच्चा सौदा डेरा प्रमुख से अपने समर्थन की घोषणा करवाई थी। ऐसे में कई संतों पर सत्ता की कृपा बनी रहती है। कोई भी अधिकारी वहां हाथ डालने का दुस्साहस नहीं कर सकता। जनता की श्रद्धा उसे अलग शक्ति प्रदान करती है।
एक ओर सत्ता की ताकत, दूसरी ओर श्रद्धालुओं की भीड़ की शक्ति कलियुगी भगवानों को असली भगवान जैसा ही मान बैठने का भ्रमजाल तैयार करने का काम करती हैै। जिसमें लोग भेड़चाल में फंसते चले जाते हैं। बड़े पढ़े-लिखे और उच्च पदों पर सेवारत लोगों को मैंने ऐसे लोगों के यहां धन भेंट करते देखा है। यह देखकर हंसी आती है कि रामपाल और आसाराम जैसे लोग अपनी गरीबी दूर करने को यहां बैठे थे और दूसरे लोग उनके चरणों में माथा टेककर अपनी गरीबी उनसे दूर कराने आ रहे थे। वह भी जो दो-चार सौ रुपये जेब में बचे थे इन्हें देकर।
वैसे इन आश्रमों के द्वारा कुछ गरीबों को मुफ्त भोजन, कपड़े, दवायें तथा ठंड में रहने को आश्रय देने का प्रबंध कर कई जनसेवा के कार्य भी किये जा रहे हैं। रामपाल के आश्रम के अंदर भी कई हजार लोगों को प्रतिदिन लंगर खिलाया जाता था। यह रहस्योद्घाटन अब हुआ है।
कई संतों के आश्रमों व डेरों की व्यवस्था वास्तव में समाजसेवा के लिहाज से बहुत उपयोगी और प्रशंसनीय भी है। हमें भारतीय संत परंपरा के सकारात्मक पक्ष को भी ध्यान में रखना होगा। चंद कलंकित मठाधीशों के कारण हम अपने अनेक विद्वान एवं सज्जन मनीषियों की गरीमा को ठेस नहीं पहुंचायेंगे। उनका हम पूर्ण सम्मान भी करते हैं।
-जी.एस. चाहल.
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