इंसान और भगवान

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हम कहते है यह सारी सृष्टि किसने बनाई भगवान ने और भगवान को किसने बनाया इन्सान ने। ये सभी भगवान, ये सभी धर्म, धर्म-ग्रन्थों की रचना किसने की। ये स्वर्ग-नरक, जन्नत-दोजख की कल्पना किसने की, उत्तर मिलता है इन्सान ने। फिर इन्सान को किसने बनाया? भगवान ने। भगवान कौन? जो सृष्टि का नियंता है। ये सारी कायनात उसकी रचना है जो सब कुछ चलाता है।

यह सूरज, चाँद, विभिन्न ग्रह जो हमारे सौर मंडल में हैं अपना प्रभाव हम पर डालते हैं। चाँद जो हमारे सबसे निकट है हम पर सीधा प्रभाव डालता है। ज्वार-भाटा इसके कारण आते हैं। सूरज से ही हमारी धरती पर जीवन संभव है। इन सभी की एक निश्चित चाल है जिससे दिन-रात होते हैं, मौसम बदलते हैं। इतना ही नहीं हमारा सौर-मंडल आकाश गंगा का अंग है। ऐसी बहुत सारी आकाश गंगा अनंत विस्तार में हैं। इन सब को किसने बनाया? जवाब है भगवान ने। तो भगवान कौन है? जो अजन्मा है। जो अनदेखा है, जो अनंत है, जो अरूप है, पर है अवश्य। जो सब कुछ चलाता है। हम उसे विभिन्न नामों से जानते और पहचानते हैं।

बचपन में पढ़ा एक किस्सा याद आ रहा है। एक गुरु के तीन शिष्य थे। एक हिन्दू, एक मुसलमान, एक अंग्रेज। तीनों मेला देखने जाने लगे तो गुरू ने एक रुपया देकर कहा-‘आप कुछ खरीद कर खा लेना।’

मेले में पहुंचकर हिन्दू बोला-‘मुझे तो हिन्दुवना खाना है।’

मुसलमान बोला-‘मुझे तरबूज खाना है’ और अँगरेज बोला-‘मुझे वाटर मेलन।’

अब एक रुपया था। तीनों झगड़ा करने लगे। तभी एक समझदार आदमी उधर से गुजरा और बच्चों से झगड़े का कारण जान मुस्कराया।

उसने उनसे उनकी पसंद की चीज़ दिलाने का वादा कर एक रुपया ले लिया और उन्हें रुकने को कहा। उस आदमी ने एक तरबूज खरीदा और उसके तीन बराबर भाग किये। पहले अँगरेज को बुलाया और एक टुकड़ा उसे देकर पूछा-‘क्या तुम्हें यही चाहिए था?’

अँगरेज ने ‘हाँ’ कहकर उसे ले लिया।

फिर उसने मुसलमान बच्चे को बुलाया। उसे भी वही कहा। उसने भी खुशी से ले लिया और हिन्दू बच्चे ने अपनी पसंद का हिन्दवना ले लिया। तीनों अपनी पसंद की चीज़ पाकर खुश थे।
वह आदमी मुस्कराता चला गया।

इस कहानी में हमने देखा कि तीनों एक ही चीज़ चाहते थे पर उसे अलग-अलग नाम से जानते थे। भगवान का मामला भी ऐसा ही है। हम उसे अलग-अलग नाम से जानते और पहचानते हैं। हम सब जानते हैं कि जबतक परमात्मा का वास हम में है हम जिन्दा हैं। उसके निकलते ही हम मृत हो जाते हैं। हम उसे आत्मा के नाम से जानते हैं। वह परमात्मा का अंश है। परमात्मा ’पावर हाउस’ है। हम उससे जुड़े हुए ही जीवित हैं।

हम जानते हैं कि सबसे छोटा कण परमाणु है और वह अपने आप में एक दुनिया है। संसार के समस्त पदार्थ इसी परमाणु के भिन्न-भिन्न संयोगों से बने हैं और इस परमाणु की ताकत हिरोशिमा और नागासाकी में दुनिया देख चुकी है।

खैर हम बात इन्सान और भगवान और उनके रिश्तों की कर रहे थे। एक पालित है और एक पालनहार जो सब को पालता है और हम उसी पालनहार के विभिन्न रूपों के लिए आपस में लड़ते रहते हैं। हमारी पूजा की पद्धति भिन्न हैं। हमारे पूजास्थल भिन्न हैं, पर हैं तो सब एक ही पालनहार के निमित्त।

हम उन बच्चों की तरह नादानी में लड़ते रहते हैं। कुछ निहित स्वार्थ और स्वार्थी लोग हमें लड़ाते हैं और हम लड़ते हैं। इस पर गंभीर विचार की आवश्यकता है।

हम देखते हैं कि कुछ व्यक्ति अपने कामों से इतने महान हो जाते हैं कि उनके अनुयायी उन्हें भगवान की तरह मानने और पूजने लगते हैं। उनकी श्रद्धा उस भगवान में होती है और यही श्रद्धा भगवान की शक्ति हमारे तमाम देवी-देवता इन्हीं भगवानों के रूप हैं और हमें आजादी है चाहे जिस भगवान को पू्जें। फिर मेरा भगवान, तेरा भगवान की क्या लड़ाई है।

जब परोक्ष में हम उसी आदि शक्ति अरूप, अजन्मे पारब्रह्म की ही बात कर रहे होते हैं। अरे भाई अपनी-अपनी श्रद्धा अनुसार हरेक को अपना भगवान पूजने दो। तुम्हें क्या परेशानी?

संक्षेप में यह कि यह लड़ाई निरर्थक है की कौन भगवान बड़ा, कौन छोटा। सबके लिये उनका भगवान पूजनीय है। ऐसी लड़ाई और विवाद केवल स्वार्थी लोग उठाते हैं। उनसे सावधान रहने की जरूरत है।

-अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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