हर शोख काबिले-काबिल हो ये जरुरी नहीं,
हर दुआ को शोख हासिल हो ये जरुरी नहीं,
मस्ती में कोई पैदल चले और बात है,
हस्ती में कोई पैदल हो ये जरुरी नहीं,
जहां पर मुश्किल का खौफ सताता है तुम को,
वहां वाकई में मुश्किल हो ये जरुरी नहीं,
जिसे पागल समझ कर पागल बन रहे हैं आप,
दरअसल वो पागल हो ये जरुरी नहीं,
हर जीवन मां से व्यापक होता है लेकिन
हर सर पर मां का आंचल हो ये जरुरी नहीं,
नज़र, अपनी नज़र से तेज़ हो सकती है ‘अमर’,
हर दिल अपने जैसा दिल हो ये जरुरी नहीं।
-अमर सिंह गजरौलवी.
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Bahut Ache ! Badhai
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