सर्दी से भय

जनवरी गुजर रहा है। फरवरी में मौसम का मिजाज़ बदल जायेगा। लेकिन जनवरी का आखिरी सप्ताह जिस तरह ठंडक भरा गया है उससे साफ हो गया कि मकर संक्रांति के बाद मौसम नहीं बदलता, बल्कि कुछ समय के लिये क्रूर जरूर हो जाता है।

पिछले कुछ दिनों से मैं रोज मौसम का तापमान पता कर रहा हूं। ऐसा दिन में चार या पांच बार किया जा रहा है।

एक पड़ोसी तो मोजे उतार ही नहीं रहे। नहाते भी रोज नहीं। एक दिन छोड़कर नहा रहे हैं और वह भी गर्म पानी से। नहाते समय वे शोर भी खूब करते हैं। वैसे इसी बहाने मोहल्ले में "राम-राम" की गूंज होती है। कंबल को ओढ़कर रखते हैं। बाजार भी उसी तरह जाते हैं। मफलर कसकर लपेट कर रखते हैं ताकि ठंडी हवा का प्रवेश न हो।

पिछले दिनों उनका गला ऐंठ गया। ऐसा ऐंठा कि चिकित्सक ने भी हाथ खड़े कर दिये। एक सप्ताह लगा उन्हें ठीक होने में। ठीक हुए तो नियमित काढ़े के सेवन से जो उनकी बूढ़ी मां ने तैयार किया था। महाशय आजकल नज़ले से जूझ रहे हैं। चिकित्सक कहता है कि ज्यादा बचाव करने के कारण सर्दी का हमला तेज हो रहा है। कम सुरक्षा उपाय अपनाते तो शरीर झेलने की क्षमता रखता।

मैंने उन्हें समझाया है कि वे सर्दी से इतना भय न रखें। आराम से रहें। मौसम का मुकाबला करें। व्यायाम कर अपनी रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ायें।

उनके पल्ले जितना भी पड़ रहा है मैं नहीं जानता लेकिन उनकी खबर रोज रख रहा हूं। किसी दिन उनके साथ अदरक की चाय पी लेता हूं, तो कभी उनकी मां के हाथ के बने तिल के लड्डू खा लेता हूं।

एक बात कहनी पड़ेगी कि सर्दी का सितम जारी है। शायद फरवरी की रातें बिन रजाई नहीं कटने वालीं।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.