उम्र बढ़ने के साथ ही जोड़ों के दर्द की समस्या अधिकतर उम्रदराजों में देखने को मिलती है। मैं उस समय अधिक हैरानी करता हूं जब कई नौजवान भी इसकी शिकायत करते हैं। उनकी जीवन शैली इसके लिए जिम्मेदार बतायी जाती है। जबकि बुढ़ापे में जोड़ों के दर्द को एक आम समस्या माना जाता है।
मैंने देखा है ऐसे बुजुर्गों को जिनका बुढ़ापा भी उनकी जवानी की तरह हंसते-मुस्कराते बीता। उन्होंने जो नियम जवानी के समय बनाये थे, तमाम उम्र उनका पालन करते रहे। उम्रदराज होने पर जरुर नियमों में परिवर्तन करने पड़े, लेकिन खुद को स्वस्थ रखने की कवायद से पीछे नहीं हटे।
सुबह टहलने की आदत से बुजुर्गों को नया जीवन मिल सकता है। हमारे पड़ोस में रहने वाले एक उम्रदराज रोज सुबह टहलते हैं। ऐसा वे कई साल से करते आ रहे हैं। उनके जोड़ों में दर्द की शिकायत नहीं है।
मैं खुद को उनके सामने अजीब पाता हूं। मैं नियम का पालन नहीं कर पाता। सुबह समय से उठने में दिक्कत महसूस करता हूं। वे बुजुर्ग होकर भी अपनी दिनचर्या को बेहतर किये हुए हैं। उनसे सीख लेनी चाहिए।
एक चिकित्सक बुजुर्गों को सलाह-मश्विरा देने में माहिर हैं। उन्होंने कहा कि टांगों को चलाते-फिरते रहेंगे तो जोड़ों का दर्द होने के कम चांस रहेंगे। उन्होंने खान-पान का ध्यान रखने की भी बात कही।
बुढ़ापे में देखभाल बहुत मायने रखती है। परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी बनती है कि वे बुजुर्गों का ख्याल रखें। जब वे बूढ़े होंगे तो उनके बच्चे भी उनकी सेवा करेंगे। हमारे बच्चे अपने माता-पिता को बुजुर्गों के सेवा करते देखेंगे तो उनमें भी अच्छे संस्कार जागेंगे.
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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