कोशिश की जा सकती है
ये सच है कि बहू की सास उसकी माँ बनने का दावा तो करती है पर अपनी जनी लड़की और बहू में जब चुनना होता है वो अपवाद छोड़ बहुधा अपनी जायी को ही चुनती है। इसी प्रकार जब बहू को अपने माँ-बाप और सास-ससुर में चुनने को कहा जाये तो बहुधा वो अपने माँ-बाप को ही चुनती है। इसमें अस्वाभाविक कुछ नहीं। यह पूर्णतया प्राकृतिक और स्वाभाविक चुनाव है।
यदि बहू की सास उसकी सचमुच की माँ बनना चाहती है और चाहती है कि बहू भी दिल से उसे माँ समझे और माने तो उसे एक ईमानदार कोशिश तो करनी ही होगी। इससे हर घर में सदा रहनेवाली शांति आ सकती है।
ठीक उसी प्रकार दामाद यदि अपने सास-ससुर को अपने माँ-बाप की तरह ही माने और पुत्रवत व्यवहार करे तो सास-ससुर उसके सचमुच के माँ-बाप बन सकते हैं। उसकी पत्नी भी अपने सास-ससुर की बेटी बन सकती है । यह असंभव भी नहीं। एक ईमानदार कोशिश तो की ही जा सकती है और हर घर में सदा रहने वाली शांति आ सकती है।
इससे हर घर, हर मोहल्ला, पूरा समाज, पूरा देश एक निखालिस स्वर्ग बन जाये, इसीलिए मैं कहता हूँ कि-
कोशिश तो की ही जा सकती है।
सचमुच कोशिश तो की ही जा सकती है।
-अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव
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