सेवानिवृत्ति के बाद

retirement-days-of-peopleकुछ लोग केवल मौत का इंतज़ार करते हैं यह सोच कर कि जिंदगी तो बस अब ख़त्म। सेवा से बाहर यानी अब किसी काम के नहीं रहे। घर में भी इज़्ज़त थोड़ी घट ही जाती है। पत्नी कहती है-‘तुम्हे नाश्ते की क्या जल्दी है। पहले मुन्ने का टिफ़िन बन जाने दो। उसे काम पर जाना है।‘

कुछ सलाह देते हैं कि अब तो उतनी मेहनत नहीं रही। अतः खाना कम करो। सुबह-शाम सैर पर जाओ, सेहत बनी रहेगी। जब वो बेचारा किचेन में पत्नी की मदद करना चाहता है तो पत्नी कहती है-‘अरे तुम्हारा यहाँ क्या काम ? जाओ बाहर बैठो, अखबार पढ़ो। दोस्तों में घूमो, मज़ा करो।‘

यदि लड़का देर रात तक पढ़ता है और बुज़ुर्ग कहते हैं कि बेटा जल्दी सोने और जल्दी जागने का नियम बहुत अच्छा होता है। तो लड़का उन्हें न डिस्टर्ब करने और जा कर आराम करने की सलाह देता है.

कुछ लोग सेवानिवृत्ति को एक अवसर के रूप में देखते हैं। तमाम शौक जैसे साहित्य-लेखन, पठन, चित्रकारी, संगीत, देशाटन, भ्रमण जो सेवा-काल में नहीं कर पाये। उन्हें पूरे करने के लिए कुछ गिटार सीखते हैं, कुछ सितार, कुछ चित्रकला में भांति-भांति के प्रयोग। और भी तरह-तरह के शौक हैं। उन्हें पूरा करने का यह बेहतरीन अवसर होता है। अपनी सृजन-क्षमता का उपयोग करके ऐसे लोग समाज के बड़े काम के और उपयोगी सिद्ध होते हैं।

कुछ लोग अपने अलग शौक पूरे करते हैं जैसे आराम करना, जाम लड़ाना, सिर्फ खाना
और आराम करना। पेंशन मिलती ही है, फिर क्यों कुछ करना। ऐसे लोग बहुत जल्दी तमाम बीमारियों से ग्रसित हो इस दुनिया से कूच कर जाते हैं।

अब यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह सेवानिवृत्ति के अवसर को कैसे लेता है और आगे की जिंदगी जिसे स्वर्ण काल भी कहते हैं कैसे जीता है। परिवार के लिए, समाज के लिए, देश के लिए उपयोगी बनकर या तमाम बीमारियों से ग्रस्त, गंदे शौकों और गंदे लोगों के साथ समाज में गलीच बनकर बुरे हाल में इस दुनिया से कूच करता है।

अतः सेवानिवृत्ति वह अवसर है जब आदमी का एक तरह से पुनर्जन्म होता है। उसे इस अवसर का सही उपयोग करना चाहिए। इसी में सब का भला है।

-अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव

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