वृद्धावस्था में बोलें प्यार की भाषा

परिवार के सदस्य उम्रदराजों के लिए वक्त निकालें तो बुढ़ापा कम झंझट और तनाव के कट सकता है. हम जानते हैं कि वृद्धावस्था वह मौसम है जब पतछड़ होता है, समय अपना नहीं रहता, वक्त थका देता है और जिंदगी अपनी नहीं लगती. ऐसे समय में यदि अपनों का साथ न हो तो स्थिति अच्छी नहीं रह जाती.

अपनों का साथ है जरुरी :

उम्र का यह पड़ाव बहुत नाजुक होता है. इंसान की मानसिक स्थिति उतनी मजबूत नहीं रहती. वह सोचता है कि उसकी जिंदगी में करने को अब उतना बचा नहीं. इसलिए वह तनाव में आ जाता है. वह एकाकी हो जाता है. अपने भीतर की दुनिया में घुस जाता है. वह चिड़चिड़ा भी हो जाता है.

ऐसे अवसर पर यदि उसके अपने साथ बैठें, बातें करें तो वह एकाकीपन से दूर होने लगता है. वृद्धों में देखा गया है कि वह बहुत जल्दी खुश हो जाते हैं, बहुत जल्दी गुस्सा करते हैं. अपने नाती-पोतों के बीच रहकर वे बहुत प्रसन्नता महसूस करते हैं. उनके साथ वक्त बिताकर वे खुद को भूल जाते हैं. उन्हें अपना बुढ़ापा बुढ़ापा नहीं लगता. बच्चों के साथ वे बच्चे बन जाते हैं.

प्यार की भाषा संजीवनी है :

प्रेम से कही बात दिल तक पहुंचती है. बुढ़ापा भी प्रेम की बोली को बहुत अच्छी तरह समझता है. इस उम्र में भावनायें बहती हैं. प्यार से बात कीजिये. वे इस उम्र में प्यार की भाषा ही सरलता से समझ सकते हैं.

कहते हैं न कि बूढ़ा आदमी बच्चा ही होता है. वैसे भी आपके अपनों का यह आखिरी समय है. जितना प्यार आप उन्हें देना चाहें, उतना कम है, लेकिन उन्हें जरा भी ऐसी बात न कहें जिससे उनके कोमल हृदय और दिमाग पर गलत प्रभाव पड़े.

ऐसा विशेषज्ञ भी मानते हैं कि वृद्धावस्था में वृद्धों से प्यार की बोली बोलने से हमारा मन भी तनावमुक्त होता है. इसलिए प्यार की भाषा संजीवनी है; बुजुर्गों के लिए भी और जवानों के लिए भी.

-हरमिन्दर सिंह चाहल.

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