बोलते हुए शब्दों की परछाईं भी इतराती है,
फड़कती है तंग गलियों में बहारें,
मालूम है तेरी जादूगरी जो मुमकिन है,
किस्मत पर यकीन है मुझे,
बदल रही तस्वीर जिंदगी की,
शब्दों में उलझी कहानी नयी नहीं,
उम्र जो बढ़ रही,
मौत के आगोश में जाने को बेताब कोई।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.