गजरौला से गूगल का सफर

एक ऐसी दुनिया जहां हर कोई नौजवानों की बातें करता है, वहां एक नौजवान बूढ़ों की बात कर रहा है.

गूगल के गुड़गांव ऑफिस पहुंचने के बाद एक अलग तरह की संस्कृति का पता चला। कार्यस्थल और उससे जुड़े लोगों की सोच जो मेरे जैसे व्यक्ति के लिए शोध का विषय हो सकती है। एक दशक से अधिक समय बीत गया ब्लॉग लेखन करते हुए, और हर बार रोचक होता रहा।

30 मार्च के शाम चार बजे मैं गूगल के श्रेष्ठ मस्तिष्क वाले लोगों के बीच था। गूगल के प्रोडक्ट मैनेजर शेखर शरद, सीनियर प्रोग्राम मैनेजर रिचा सिंह और विदेशी टीम के सदस्य बेहद प्रसन्न नजर आये। करीब एक घंटा उन्होंने मेरे बारे में जानने में बिताया। हालांकि चर्चा करीब दो घंटे चली।

गजरौला से गूगल का सफर

शायद ब्लॉग्गिंग का मेरा सफर किसी फिल्मी कहानी की तरह रोमांचक और हर पल हैरान करने वाला भी है। गजरौला जैसा छोटा कस्बा जो धीरे-धीरे शहर की शक्ल ले रहा है, लेकिन उसके लिए बुनियादी चीजों की जरुरत होगी जिसके लिए यह अभी तैयार नहीं। इंटरनेट की धीमी गति और लंबे चौड़े बिल जिनका मुकाबला करते हुए मैं आगे बढ़ा। वृद्धों पर लिखना आसान काम नहीं था। एक ऐसी दुनिया जहां हर कोई नौजवानों की बातें करता है, वहां एक नौजवान बूढ़ों की बात कर रहा था। बुढ़ापे पर कवितायें भी लिख रहा था। वृद्धग्राम दुनिया में वृद्धों का पहला हिन्दी ब्लॉग है। सबसे बड़ी बात 2009 में हुई जब ब्लॉग को नयी पहचान मिली। अमर उजाला के संपादकीय में मेरे ब्लॉग छपने शुरु हुए। उसी साल एनडीटीवी के एंकर रवीश कुमार ने हिन्दुस्तान अखबार के संपादकीय में वृद्धग्राम की समीक्षा लिखी। कुछ दिन बाद हिंन्दी की शीर्ष वेबसाइट वेबदुनिया डॉट कॉम में रविन्द्र व्यास ने एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था-'इन कांपते हाथों को बस थाम लो।’ दैनिक जागरण सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में वृद्धग्राम की चर्चा मुझे और लिखने के लिए उत्साहित करती रही।

बूढ़ी काकी, बूढ़े काका जैसे पात्रों से संवाद को सबसे अधिक पसंद किया जाता रहा है। सफरनामा में यात्राओं का जिक्र होता है, लेकिन वहां भी अधिकतर उन बुजुर्गों की कहानियां उतरती हैं जिनसे सफर के दौरान मेरी मुलाकात होती है।

साल 2015 में मुझे सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगर के सम्मान से नवाजा गया। ये वे पल थे जिसका मुझे लंबे समय से इंतजार था। उसके बाद 2016 में मेरा पहला उपन्यास आया जो मानव संसाधन विभाग जैसे विषय पर लिखा गया है। नौकरीपेशा लोगों की जिंदगी के भीतर मैंने झांकने की कोशिश की और उनकी कहानी को कुछ पात्रों के जरिये उकेरा।

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2017 में मैं उन लोगों के बीच बैठा था जो गूगल को हम तक लेकर आये हैं। यह हैरानी भी थी, और एक तरह से उस सफर का एक पड़ाव भी जो मैं तय कर रहा हूं। ब्लॉगर या वर्डप्रेस हमारे क्षेत्र के लोग उतना नहीं जानते। गूगल टीम से चर्चा के दौरान कई मसलों पर विचार हुआ। इंटरनेट पर हिन्दी को और उन्नत बनाने के लिए समय-समय पर मैं गूगल को सहयोग देता रहूंगा। मैं गूगल के टूल्स पर काफी समय से अध्ययन और शोध कर रहा हूं।

गूगल लंबे समय से हिन्दी टूल्स पर काम कर रहा है। पिछले कुछ साल से हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए गूगल ने हिन्दी इनपुट टूल के कई वर्शन पर कार्य किया है। इनकी मदद से जिसे हिन्दी लिखनी नहीं आती वह भी साधारण कीबोर्ड से हिन्दी में लिख सकता है। साथ ही मोबाइल में भी इसका प्रचलन काफी बढ़ा है। गूगल ने क्रोम ब्राउज़र के लिए हिन्दी इनपुट टूल की एक एक्सटेंशन लांच की है जिसके द्वारा आप हिन्दी में लिख सकते हैं।

गूगल टीम ने मुझसे कई अन्य बिन्दुओं पर विस्तार से चर्चा की। जापान से आये गूगल टीम के सदस्य हर बिंदू को दर्ज करते रहे जिसपर टीम मंथन करेगी।

अब मैं अपनी रिसर्च का समय बढ़ा सकता हूं क्योंकि उससे मुझे जहां काफी कुछ सीखने का मौका मिलेगा वहीं दूसरों को भी लाभ होगा। क्योंकि समय के साथ बदलाव बहुत जरुरी है।

-हरमिन्दर सिंह.

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