नैनहू नीर बहै तन खीना



उपदेशों की एक बहुत बड़ी मचान बांधने का कार्य तेजी के साथ किया जा रहा है। ये कुछ उन्हें सबक सिखला जाये जो सोचे बैठे हैं कि उन्हें अपनों के साथ एक बहुत बड़े खेल का प्रारंभ करना है। यह खेल ही तो होगा। यहां दुख और दर्द का अहसास किया जायेगा। उनकी पीड़ा को अपनी माना जाये जिनके साथ यह किया जाने वाला है या किया जा रहा है। वे बतातें ही तो नहीं लेकिन अंदर की कराहटों को छिपाना इतना आसान भी नहीं हैं। समझ सकते हैं उनके चेहरों की सलवटों से तथा उनके शब्दों की उलझन से कि वे कितने टूट चुके हैं।

यह अवस्था ही कुछ ऐसी है कि सब कुछ खोया-खोया सा, खामोश सा लगता है यह जहां। पता नहीं कैसे जीते हैं वे लोग जो हालातों के साथ उठते, बैठते, जागते, सोते रहते हैं।

यहां लड़ाई अपने से होती है, अपनों से भी और उससे भी जो इसे चैबीसों घंटे देखता रहता है। फिर वही बात, जब जी भर कर जिये हैं, तो पुराने होने में दर्द कैसा? धूल चीजों को धूमिल करती है। हम भी यदि धूमिल हो रहे हैं तो इसमें क्या बुराई है? राख की ओट में मिलने की ख्वाहिशें जल्द पूरी हो जायें। यह शायद ही तो है।

चलिये ठीक है मान लें कि बहुत अच्छा नहीं हो रहा। लेकिन क्या इससे अच्छा हो सकता है इस उम्र में? झुर्रियां टिकीं हैं। यह कई सालों के लिये हैं।

आईये देखते हैं कि इस अवस्था के बारे में हमारे धर्मशास्त्र क्या कहते हैं-

अभिभावदन शीलस्य नित्यम्वृद्धोपसेविनम्।
चत्वारि तस्य वर्द्धयन्ते आयुः विद्या यशोबलम्।।
(हिन्दू धर्मशास्त्र)

-जो नित्यप्रति वृद्ध जनों तथा अभिवादन योग्य भद्र जनों की सेवा करता है, उसकी आयु, विद्या, यश और बल चार चीजें बढ़ती हैं।


नैनहू नीर बहै तन खीना केस भये दुध बानी।
रुंधा कंठ सबद नहिं उचरहि अब क्या करै परानी।।
(आदि श्री गुरु ग्रंथ साहिब)

-आंखों से पानी बह रहा है। शरीर क्षीण हो गया, केश दूध की भांति सफेद हो चुके, बोलते ही गला रुंध जाता है। वृद्धावस्था के ये स्पष्ट लक्ष्ण हैं। ऐसे में हे प्राणी, अब क्या उपाय है?


विरध भयो सूझै नहीं, काल पहुंचयो आनि।
कहु नानक नर बावरे, क्यों न भजै भगवान।।
(आदि श्री गुरु ग्रंथ साहिब)

-मानव वृद्ध हो गया, कुछ भी नहीं सूझ रहा। उधर काल भी निकट ही पड़ा है। गुरु जी कहते हैं कि हे पागल मानव तू फिर भी ईश्वर का भजन क्यों नहीं करता?

-हरमिन्दर सिंह