पापा, प्यार और बेटी काफी जुड़े हुये हैं। पिता को सबसे प्यारी अपनी बेटी होती है।
सबसे छोटी बेटी कलेजे का टुकड़ा होती है उनकी नजर में। यह आमतौर पर देखने में आया है कि एक बाप अपनी बेटी को हद तक चाहता है। डोली विदा होती है, तो उसकी आंखें ज्यादा नम होती है। वह भीतर तक रोता है।
मां का विचार बदला हुआ होता है। उसके लिये बेटा लाडला है। मुझे लगता है यह लगाव दोनों माता-पिता में अलग-अलग होता है। पिता बेटी को आजादी देने का इच्छुक है, पर मां को जमाने की फिक्र है। कहती है-‘‘सयानी हो गयी, लोग क्या कहेंगे।’’
पिता के लिये पुत्री जैसे बड़ी ही न हुई हो, अभी छोटी ही है और सदा छोटी ही रहेगी। मां परेशान है और बेटी को ‘उपदेश’ देते नहीं थकती।
बेटी के प्रति मां का व्यवहार कई अवसरों पर भेदभाव वाला है। बेटा कुछ भी करे, करने दो। कहेगी-‘‘बेटे ऐसे ही होते हैं।’’ फिर कहेगी-‘‘ये जानें किस पर गई है। भाई को पढ़ने नहीं देती।’’
बेटी अपना दर्द पिता से अच्छी तरह बता सकती है। पिता उसकी बात ध्यान से समझता है।
फिर एक दिन ऐसा आता है जब चीजें पुरानी होने लगती हैं और लोग भी। तब लड़का पास नहीं होता। बेटी ही काम आती है। वह मां-बाप को दुखी देखकर दुखी होती है। उसका मन कोमल है, वह दोनों को एक नजर से प्रेम करती है।
-हरमिंदर सिंह