
अंगुलियों में कसमसाहट है,
चौखट पर यम की आहट है,
कंधों की सिकुड़ती हड्डियां,
टांगों में कहां जान बाकी है,
जद्दोजहद फिर भी जारी,
खुद की खुद से लड़ाई है,
सूखा कंठ, शब्द नहीं उचरते,
आवाज़ भी भर्रायी है,
यह इंसान की छटपटाहट है,
चौखट पर यम की आहट है,
कांप रही देह मेरी,
मुड़ी कमर को लेकर चला,
थकान चारों ओर छायी है,
काली उदासी मंडरायी है,
वीरानी में फड़फड़ाहट है,
चौखट पर यम की आहट है।
-Harminder Singh
बहुत मार्मिक प्रस्तुति...दिल को छू जाती पंक्तियाँ..
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील रचना ...
ReplyDeleteआज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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ye sacchayi hai aur is se muh nahi moda ja sakta....lekin is maan kar bhi kya kar sakte hain....beshak ye aahat hai lekin isme marzi to yam ki hi hai na...aap kuchh nahi kar sakte.....han bas ek kaam kar sakte hain....jiske liye shareerik vayavo ke kary ki bhi jarurat nahi padti...vo hai ki baki bache samay ko bharpoor khush rah kar jiyo.
ReplyDeletesunder rachna.
बेहद संवेदनशील रचना.
ReplyDeleteसंवेदनशील, हृदयस्पर्शी....
ReplyDeleteसादर...
बेहद मार्मिक एवं संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.