जिंदगी अभी रुकी नहीं
आकाश के दादाजी काफी दुबले हैं। वे आपको दिन में कई बार मोहल्ले में टहलते मिल जायेंगे। इससे उनमें ऊर्जा बनी रहती है। इसी तरह मोहल्ले की बूढ़ी ताई भी इधर से उधर घूमती रहती है। उनका मत है,‘बुढ़ापे में एक जगह बैठे रहने से हड्डियां जाम हो जाती हैं।’ ताई ठीक कहती है।
बूढ़े लोग चारपाई पर गिर गये तो फिर गिर ही जाते हैं। लेकिन बूढ़ी ताई की तरह घूमना हर किसी के बस की बात भी तो नहीं।
कई महिलाएं आकाश के दादा और बूढ़ी ताई से उम्र में आधी हैं। उनसे ठीक से चला नहीं जाता। कहती हैं, टांगों में दर्द होता है। उनका यदि अब ये हाल है, वे तो बुढ़ापे से पहले ही टिक जायेंगी।
दादा जी को जहां कहीं भी गाय दिख जाती है, वे उसे कुछ न कुछ खिला ही देते हैं। पशुओं से उन्हें बड़ा प्रेम है। बूढ़ी ताई ने तो कई पशु पाल भी रखे हैं। वह उनकी सेवा में लगी रहती हैं। उनकी खासियत है कि वे नंगे पैर रहती हैं। मैंने जब भी उन्हें देखा, वे बिना चप्पल के मिलीं। हां, किसी रिश्तेदार या समारोह में जाना हो तो कई साल पहले खरीदे गए एक जोड़ी हवाई चप्पल हैं, उन्हें पहनकर जाती हैं।
मैंने दो वृद्धजनों का जिक्र किया। दोनों बुढ़ापे को एक हौंसले के साथ जी रहे हैं। ये उन बूढ़ों में शामिल किये जा सकते हैं जिन्हें बुढ़ापा काटने को नहीं दौड़ता। एक भरोसा है खुद से कि बाकी है बहुत कुछ, क्योंकि जिंदगी अभी रुकी नहीं।
-Harminder Singh
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