मैं हताश हूं। क्रोध की भावना है तो सही लेकिन वह मेरे भावों के साथ सामंजस्य बैठा नहीं पा रही। यह उलझन भरी स्थिति जरुर मालूम पड़ती है लेकिन इसमें कोहरे की गुंजाइश कहीं-कहीं दिखाई पड़ रही है।
बहुत सोच में डूबने के बाद भी कुछ विशेष तय होता हुआ नहीं मालूम होता। यह हमें इस बात के लिए उकसाता है कि हमारे साथ कोई नहीं हैं, हमें उग्र होना चाहिए। ऐसा होता भी है जब हम हताशा के घेरे में स्वयं को निर्जनता के आवरण में ढका पाते हैं तो एक तरह की असहजता समा जाती है जो हमें उग्र होने पर विवश करती है।
किसी ने किसी का क्या बिगाड़ा? किसे से मेरा क्या लेना-देना? आदि ऐसे तमाम सवाल हैं जो हमें हमेशा अपने आसपास मंडराते नजर आयेंगे। ये कहना आसान है कि यह हमारी नासमझी का नतीजा हो सकते हैं या हमने स्वयं को वातावरण के अनुकूल नहीं किया।
दुखी होने पर हम असहाय से हो जाते हैं। दीवारों में सिर मारने का मन करता है। ऐसा हर बार नहीं होता। जब भी होता है तब हम स्वयं से भी खफा हो जाते हैं। यह प्रकृति इंसानी है। यह उपज हमारी है। हमने इसे रोपा है, बीज उगने के बाद पौधा बन जाये तो इसमें बुराई नहीं। प्रकृति का नियम तो यही कहता है कि फसल पकने के बाद कटती है।
मेरी मां का मानना है कि जब इंसान दुखी होता है तो उसकी सबसे बड़ी हार हो रही होती है। हार रहा एक इंसान होता है जिसकी पराजय तय मानी जा सकती है। जीतने की लड़ाई में धैर्य की परीक्षा देनी पड़ती है। विजेता कहीं बाहर से नहीं आता। दो हैं तो एक के सिर पर ताज होना तय है।
यह सच है कि मैं हर बार हारता हूं स्वयं से। यह सच है कि मैं हर बार परास्त होने के लिए खुद से खफा होता हूं। यह भी झूठ नहीं कि मैं हर बार अकेला पड़ जाता हूं।
मुझे क्या करना चाहिए? क्या मुझे जुझारुपन की सीमा को समझना चाहिए? क्या मुझे उनसे सबक लेने की जरुरत है जो जीते हैं, लेकिन संघर्ष करना उन्होंने सीखा है संघर्ष से?
मुझे किसी ने कभी बताया नहीं कि वे खुद से किस तरह लड़ते हैं। दरअसल इसमें मेरी थोड़ी नासमझी रही कि मैंने इस विषय को कभी गंभीरता से नहीं लिया।
विचित्र लगता है उन पलों के बारे में सोचकर जब आप स्वयं को असहाय महसूस कर रहे होते हैं। किसी ऐसे निर्जन स्थान में खुद को अकेला पाते हैं जहां पर आपकी मदद को कोई नहीं आता। हर परस्थिति, हर मोड़ और हर चौराहा आपके पक्ष में नहीं होता।
मेरे सामने कई चुनौतियां आती हैं। मैं उनका सामना करता हूं। दूसरों से सलाह लेता हूं। लेकिन कई बार चुनौतियां ऐसी होती हैं जब उनका सामना करने के लिए रणक्षेत्र में मैं अकेला होता हूं। तब किसी भी इंसान के लिए यह परीक्षा होती है। यह उस पर निर्भर करता है कि वह परिस्थिति का सामना किस तरह करेगा।
मैंने जीवन को अपने तरीके से समझा है। जानता हूं कि मैं परिपक्व नहीं। यह भी मालूम है कि चुनौतियां और संघर्ष हर कोने पर होंगे। उनसे पार पाना हमेशा आसान नहीं होगा। लेकिन मैंने खुद से जाना है कि चीजें तब आसान नहीं होतीं जब आपके पास कोई विकल्प नहीं होता और आप एक टूटे पुल पर उफनती नदी को पार कर रहे होते हैं तो विवेक और वुद्धि आपके सबसे बड़े सलाहकार होते हैं।
-Harminder Singh