एक टांग वाला कौआ


वह बेचारा लगा। उसपर दया आयी। लकिन दूसरे पल घृणा का भाव भी जागा। है तो कौआ ही। शिकार किये हैं, मांसाहारी है। एक तरह से हत्यारा हुआ। तब न देखा होगा कि किस जीव को कितना दर्द होता है। मौत सामने आने पर कैसा महसूस होता है। कोई लंगड़ा है तो वह उसके लिये आसान शिकार है। मौत देने वाला जीव आज दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर है। उसकी सेहत भी खराब थी। दुबला था वह हद से ज्यादा। 

मुंडेर पर बैठने से पहले उसने बहुत जोर लगाया। कौआ वैसे भी चालाक ज्यादा होता है इसलिये हमेशा चौकन्ना रहता है। इस कारण वह बैठने से पहले उड़ने की ज्यादा सोचता है। पंख तो उसके हमेशा उड़ने के लिये तैयार रहते हैं। कौए का संतुलन नहीं बन पा रहा था। दो-तीन मिनट का समय लगा उसे बैठने में। एक तरह से देखा जाये तो खड़ा रहा वह एक पैर पर।

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कौए को शिकार करने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता होगा। ऊपर से खतरा भी रहता होगा। आसान शिकार भी मुश्किल लगते होंगे। मरे हुये चूहे को भी शायद उसके आगे से उसके साथी खींच ले जाते होंगे। वह सिवाय मन मसोसने के कुछ न करता होगा। बहुत बुरा हाल होगा एक टांग वाले कौए का। भगवान से कहता होगा -"टांग देना तो दो देना वरना पक्षी मत बनाना।" सोचता होगा कि किस मनहूस घड़ी अपनी टांग खत्म करवायी। शायद किसी हादसे में उसके साथ ऐसा हुआ हो। या फिर साथियों के हमले में अपनी टांग गंवाई हो।

मैं हैरान होता हूं जब पाता हूं कि एक पल किसी के लिये आपके हृदय में दया भाव जागृत होता है, तो दूसरे पल आप घृणा को उपजाते हैं। यह बिल्कुल अजीब लगता है -शिकार करना और शिकार बनना। दूसरे का दर्द दूसरे के लिये संतुष्टी। न मारे तो जिये कैसे। बड़ी दुविधा है। संसार के नियम किस लिये हैं। कहते हैं कि बिना नियम के संसार नहीं चल सकता। फिर देखते रहिये -अच्छा या बुरा सब नियम के तहत हो रहा है।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.

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