तुम्हें टारगेट पर नजर रखनी है : दिग्विजय सिंह ने बीते चुनाव में राहुल गांधी के मास्टर की भूमिका निभाई। अफसोस कूंगफू नहीं सिखा पाये! |
राहुल का वेल में पहुंचना और मोदी का उसी समय उठकर चले जाना आश्चर्य पैदा करता है। मैं किंकर्तव्यविमूढ़ होकर उस दृश्य को देख रहा था। विपक्ष का एक नेता। खानदानी नेता। गांधी परिवार का चमकता चिराग। एक प्रधानमंत्री। सबसे बड़े गणतंत्र का। बहुमत सरकार का नेता। दोनों में विरोधाभास है। प्रधानमंत्री को जाना पड़ा।
ये मेरी बहन है : प्रियंका गांधी चुनाव के दौरान डटी रहीं। भाई के लिए इस बार राखी पर कौन सी राखी ला रही हैं प्रियंका। क्या कोई ऐसी पावरफुल राखी बांधेंगी जो भाई और आक्रामक हो जाये! |
सोनिया का बेटा मैदान में आ चुका है। इसे अन्यथा न लिया जाये। वह पहले भी रणभूमि का हिस्सा रहा है। वो अलग बात है कि वह हथियार उठाने का प्रशिक्षण लेकर नहीं आया। मैदान में ही सबकुछ सीख रहा है। जानता है वह कि यहां खतरा बहुत है, लेकिन उसकी दिलेरी देखिये बाजू चढ़ाकर गुर्राना जानता है। चिढ़ाता है उसे विपक्ष तो वह मायूस नहीं होता बल्कि आगे बढ़ता है बिना हथियार और रणनीति के। असली राजनीति से अभी दूर है।
कुछ पंक्तियां मैं उन्हें समर्पित करना चाहता हूं:
मन में है कुछ सरकार के,
ख्वाहिशों को मार नहीं सकते।
विपक्ष की मानें तो हमारे राहुल,
मैदान में अभी कच्चे हैं।
इसके आगे की पंक्तियां किसी दिन और क्योंकि मुझे ‘मम्मी’ की याद आ रही है। तुकबंदी खुद ही कर लिजियेगा। बाॅर्डर फिल्म में अक्षय खन्ना ‘बच्चे’ वाला डायलाॅग पंक्तियां पूरी कर देगा।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
(चित्र साभार : गूगल)
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