शून्य से शुरुआत करने के बाद शून्य पर खत्म हुई। उम्र बीत गयी और लेखन भी। |
जब लेखक के पास लिखने को नहीं होता तो वह लिखता नहीं। वह सोचता है। वह बहुत दूर की सोचता है। उसकी सोच उसे अनंत से लेकर और अनंत तक ले जाती है। यह आसान नहीं होता, न हो सकता। वह चुपचाप किसी सोच में डूबकर चाय की चुस्की का आनंद लेता है। वह काॅफी की महक से खुद को उत्साहित करने की कोशिश करता है। यह वह लेखक है जो लिखता है, लेकिन वह लेखक नहीं जो वाकई लिखता है।
लेखकों के अपने विचार होते हैं। वे कई बार थक जाते हैं। ऊब जाते हैं। खुद से इतने गहरे सवाल पूछ लेते हैं कि उनका जबाव देना उन्हें भारी पड़ जाता है। लेखक खुद पर हंसता भी है। यह उसकी गलतियां हो सकती हैं या कुछ ऐसा जो उसे अजीब लगे।
जब वह मन से लिखता है तो उम्मीद रहती है कि उसे पाठक भी मन से पढ़ेगा। यदि ऐसा न हो तो लेखक पर जो बीतती है, वही उसका गवाह है। उसका दिल बहुत बार तार-तार हुआ है। वह टूटकर बिखरा है। वह गिरकर उठा है। वह जानता है गिरकर उठना और उठकर गिरने में फर्क है। फर्क इतना कि वह बिना चश्मों के दौड़ सकता है या चश्मे के बिना दौड़ नहीं लगा सकता। यह थोड़ा हैरान करता है जब लेखक कहता है कि वह गिर गया।
खाली दिमाग को दौड़ाने की कला लेखक जानता है। वह यह भी जानता है कि उसके पास लिखने के लिए कुछ नहीं, फिर भी वह कलम को तोड़ने की हिम्मत रखता है। इसके लिए उसने जीवन की बारीकियों को देखा है। उसने पाया है कि जीवन में सीढ़ी चढ़कर जाना, नई सीढ़ी का निर्माण करना और सामग्री जुटाना अलग-अलग तरह से कार्य करते हैं। बिना सीढ़ी के कूदकर जाना खतरे से खाली नहीं। वह हड्डियों को जोड़ने की कला भी विकसित कर चुका है। दवा को उसने चखा है, प्रयोग करने की कला में वह माहिर जो है। अपने नुस्खे बनाता है, बताता है और इलाज करने की क्षमता भी रखता है।
लेखक कोई भी बन सकता है और लेखक कोई भी नहीं बन सकता। ये दो बातें अलग तरह की हैं जिनका मतलब लेखक स्वयं नहीं जानता। पता नहीं लेखक क्या जानता है और क्या नहीं जानता। वह थोड़ा संशय में है। उसका शक दूर नहीं हो रहा। वह क्या करे? इसलिए वह अपनी कलम को विराम देना चाहता है। उसके हाथों में कंपन जारी है। वह उम्रदराज है। वह सहारे के बिना लड़खड़ा जाता है। उसने स्वयं को परास्त घोषित करने की प्रक्रिया का प्रारंभ कर दिया है। वह सन्यास ले रहा है। अलविदा कहने की बारी आ चुकी है।
शून्य से शुरुआत करने के बाद शून्य पर खत्म हुई। उम्र बीत गयी और लेखन भी।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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