मरने की दुआयें मांगते लोग

बुड्ढ़ा-सोचता-है-कि-वो-क्यों-नहीं-मरता

बुड्ढ़ा सोचता है कि
वो क्यों नहीं मरता ?
इतने कष्टों  के बाद भी
वो  ज़िंदा  क्यों है ?
दिखाई नहीं देता,
सुनाई  नहीं देता,
हज़ारों कष्ट ..
ईश्वर  भी भूल गया है,
काश उठा ले  अब ..

तीमारदार भी  सोचता है  कि
ये बुड्ढ़ा क्यों नहीं मरता ?
बस जीता  जा रहा है बेवजह,
न काम का, न काज का,
बिना  वजह की तकलीफ
पर बुड्ढ़ा  है कि बस
जिए जा रहा है
अपनी तमाम
तकलीफों के बावजूद ...

बुड्ढे के कारण
कहीं  जा नहीं सकते,
कहीं आ नहीं सकते,
बस मोह  में फँसे हैं,
जिंदगी गारत है,
खुद भी बुढ़ाते  जा  रहे हैं,
अपनी जिंदगी का
मज़ा  नहीं  ले  पा  रहे हैं
कब मिलेगी निजात
इस बूढ़े से ...

अब दोनों ही मज़बूर हैं
बुड्ढा मरता नहीं
तीमारदार फ्री होता नहीं
ईश्वर भी  भूल गया
बीमार को, तीमारदार को
कैसी  अजीब लीला है कि
जिस माँ बाप बुज़ुर्ग की
हम इज़्ज़त करते हैं
सदा मान  देते हैं
बूढ़े होने पर
उनकी ही मौत  की
दुआयें मांगते हैं
कभी  स्वार्थवश तो
कभी निःस्वार्थ ...

सच
यदि बुढ़ापा,
आता  ही नहीं
यूँ ही चल देते
एक दिन
हँसते खेलते
पर ऐसा
होता  ही  कहाँ है ……?
काश ऐसा होता
काश ऐसा होता
तो बीमार, तीमारदार
दोनों बच जाते.

-अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव