गीत बरसाती
बूंदों का सरपट दौड़ना,
बादलों का गड़गड़ाना,
उम्रदराजी में भी जीवन का ताल है,
याद आता है, जैसे
जिंदगी फिर जाग उठी हो।
बरसता पानी,
बहती धार,
धुंधली तस्वीर निहारता कोई,
आंखें अब ऐसी ही हैं,
सच है यह,
इसके सिवा कुछ नहीं।
उसने मुझे पुकरा था कभी,
तब खुशी बही थी, मैं भी,
आज गीलापन आंखों में नहीं,
बुढ़ापा मासूम हो चला है,
इतराते फुदकते भावों के बीच।
मैं चुप हूं, बिल्कुल चुप,
देख रहा जाते हुए, गाते हुए,
अब जिंदगी में जो है,
जो शेष है, वह गायेगा,
गीत बरसाती।
-हरमिंदर सिंह.