उस दिन बरसात होती रही। सुबह से ही पानी बरस रहा था। बूढ़े काका छाता लेकर अखबार पढ़ने आ गए। मैं कहता, उन्होंने खुद ही मेरी मां का नाम लेकर चाय को कह दिया। बोले,‘साथ में मैरी केक भी लेते आना।’
काका के दांत उनकी बातों की तरह जवान हैं। अपनी पसंद का खाते-पीते हैं। मजाल नहीं कोई उन्हें रोक सके, टोका-टाकी की बात तो दूर। समोसे के साथ कोक या पेप्सी उन्हें जरुर चाहिए, वरना साफ कह देते हैं,‘इन रुखे समोसों को कौन खाना पसंद करेगा?’
मां चाय ले आईं। काका ने मैरी केक पहले उठाया और चाय का कप बाद में।
‘वाह! क्या चाय है?’ चुस्की लकर बोले।
थोड़ी देर बाद दूसरी चुस्की ली, निगाह अखबार के पहले पन्ने पर थी। फिर कहा,‘इसे तारीफ मत समझना। चाय में स्वाद है, सो है। वरना झूठी बात मेरे मुंह से नहीं निकलती।’
कुछ देर में मां भी हमारे साथ आकर बैठ गयीं।
काका कहने लगे मां से,‘हमारे जैसों को सलाम मिल जाती है। खाने-पीने की भी कोई कमी नहीं। .....बस, अपनापन नहीं मिल पाता। लेकिन सच कहूं, तुम्हारे यहां मुझे घर जैसा महसूस होता है। मैं अकेला हूं, मगर यहां आकर एक परिवार मिल जाता है। चलो तसल्ली तो है कि कुछ लोग हमारे इतने करीब हैं। सगे न सही, पर सगों से भी ज्यादा लगते हैं।’
मां बोलीं,‘बाबूजी आप ऐसा मत कहिए। ये घर आपका ही है।’
काका ने कहा,‘हां, घर तो मेरे अपनों का ही है। मुझे भला मैरी केक इस तरह कौन खिला सकता है।’
इतना कहकर काका हल्का हंसे। मां और मैं भी मुस्करा दिये।
‘आज बरसाती मौसम है जानकी, शाम को पकौडे बना लेना। मुझे पसंद कुछ ज्यादा ही हैं।’ काका ने मां से कहा।
मां ने हामी भर दी। वैसे मां जानती थीं, काका और मैं भी कि बरसाती मौसम में हमारे घर पकौडे और चटनी जरुर बनती है। काका का कहना मात्र औपचारिकता थी।
मैंने काका से कहा,‘सुना है पड़ोस में रहने वाले किशोर जी का बेटा घर लौट आया।’
‘तुम तो घर छोड़कर नहीं जा रहे न।’ काका ने मेरी ओर देखा। ‘किशोर जब घर पर हंगामा करेगा तो कौन रुकना चाहेगा ऐसे बाप के पास। मेरा हम उम्र है, मगर पीने की आदत ने उसे अब जहां लाकर खड़ा किया है, वही जानता है इसे कि उसके साथ कैसी गुजर रही है। बेटा घर छोड़ गया बीबी-बच्चों संग। अब वापिस आया है कैंसर से लड़ते किशोर को संभालने।’
थोड़ा रुककर काका ने कहा,‘बेटा होने का फर्ज निभा रहा है, जबकि किशोर कभी भी एक अच्छा पिता नहीं बन सका। लेकिन आज के जमाने में ऐसी संतानें अपवाद हो सकती हैं।’
‘खैर, जानकी मैं अब शाम को यहां आने वाला हूं। बरसात तो रुक रुककर पड़ती रहेगी। मनोज की शादी की सालगिरह की पार्टी
में जाना है।’ काका ने कहा।
मेरी ओर देखकर बूढ़े काका ने पूछा,‘तुम भी जल्दी तैयार हो जाओ, शाम तक लौटना है।’
मैंने मुस्करा कर कहा,‘काका आज मौज रहेगी स्वादिष्ट पकवानों की।’
इसपर काका हंस दिए।
-harminder singh