पहले लड़ाई, फिर प्यार

old woman, vriddhaउस वृद्धा ने ट्रेन में दाखिल होते ही बोलना शुरु कर दिया। अपनी बहू और बेटे के साथ थी। बहू बेचारी सहमी हुई लग रही थी। गोद में बच्चा लिटाये वह, नीचे मुंह किये थी। ऐसा नहीं था कि उसे किसी से शर्म आ रही थी, वह ऐसे स्वभाव की लग रही थी।

उधर वृद्धा ने कई यात्रियों से मेलजोल कर वहां घर जैसा माहौल बना लिया। कोई उसे ताई कहता, कोई दादी, कोई अम्मा जी। दो-तीन जनों को छोड़कर उसी सीट पर एक वृद्ध भी बैठे हुए थे। उनकी सफेद धुली धोती और बादामी कुरता उन्हें सबसे अलग दर्शा रहा था। वे बार-बार अपनी मूंछों को ऎंठते और आधे घंटे या पन्द्रह मिनट के अंतराल में ‘मठारते’ भी रहते।

स्टेशन पर ट्रेन रुकी कि वृद्धा ने प्लेटफार्म पर जाकर वहां का जायजा लिया। वह डिब्बे में दूसरे दरवाजे से दाखिल होकर, फिर वहीं पहुंची। उसने पाया कि उसकी जगह पर एक मोटी स्त्री पालथी मारकर बैठी है और वह टिकते ही ऊंघने लगी। उधर बुढ़िया का बेटा व बहू पहले ही नींद के आगोश में थे।

वृद्धा का पारा चढ़ गया। वह उस मोटी महिला से झगड़ने लगी। जबकि वह महिला अधकचरी नींद में उसे वहां से परे जाने को कहती रही। वृद्धा के बहू-बेटा भी आंखें खोलकर चुपचाप सारा नजारा देखते रहे। बाद में बेटा बोला,‘अम्मा इहां बैठ जाई, हमार निकट जरा जगह है।’

पर वृद्धा कहां मानने वाली थी। अड़ गयी कि बैठना वहीं है। सभी ने उसे समझाया कि आप दूसरी सीट पर बैठ जाईये, लेकिन बुढ़िया नहीं मानी। काफी देर चूं-चूं-चैं-चैं होती रही तो मूंछों वाले वृद्ध को हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने पहले मोटी महिला को समझाया कि आपको पालथी मारकर नहीं बैठना चाहिए। बात न बनने पर उन्होंने वृद्धा को कहा कि आप ही उसे बेटी समझकर दूसरी जगह बैठ जाओ। बेचारे वृद्ध भी थक गये। न ही मोटी स्त्री खिसकी, न बूढ़ी महिला अन्यत्र बैठी।

मुझें नींद आने लगी थी। कुल मिलाकर डिब्बे के सभी यात्री नींद में खो चुके थे। अगले स्टेशन पर जब रेलगाड़ी रुकी तो आंख खुलने पर हर कोई हैरान था। हमारी हंसी छूट पड़ी। बुढ़िया मोटी महिला के कंधे से सटी मुंह खुला लेकर बेफिक्री से सो रही थी और मोटी महिला जबरदस्त खर्राटे ले रही थी।

तभी वहां मौजूद एक महिला ने कहा,‘देखो तो सही कितना प्यार हैं दोनों में। पहले लड़ रही थीं, अब साथ-साथ सो रही हैं।’

सफरनामा जारी है.....

-Harminder Singh




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