चुनौतियों के बावजूद आगे बढ़ा है भारत

देश आजादी के 67 वर्ष पूरे कर चुका। इस दौरान देश ने भारी चुनौतियों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में काफी तरक्की की है जबकि अभी बहुत कुछ होना बाकी है। हमारे देश की एक बड़ी आबादी को अभी भी असली आजादी का इंतजार है। हमारे बहुत से भाई-बहन विदेशियों की गुलामी के बाद आज अपनों की गुलामी का दंश झेलने को मजबूर हैं। हम बार-बार इसी उम्मीद में जन प्रतिनिधि और सरकारें बदलकर देखते हैं कि शायद इस बार कुछ बेहतर होगा लेकिन कुछ नहीं होता बल्कि घूम फिर कर वही चेहरे नयी सरकारों में फिर से घुसपैठ कर जाते हैं और हर नई सरकार भी पिछली सरकारों की तरह जनता को निराश करती है।

किसानों और मजदूरों के इस देश के शासन और प्रशासक बार-बार किसान मजदूर के गुणगान और बेहतरी के उपायों की योजनाओं पर चरचाओं को जारी रखते हैं। लम्बे चौड़े बजट भी बनाने की बातें होती हैं। परंतु योजनाओं और कागजों में जो होता है वह जमीनी हकीकत तक नहीं पहुंच पाता। यही कारण है कि भारत का किसान और मजदूर विकास की रफ्तार में देश के दूसरे तबकों से बहुत पीछे छूटता जा रहा है।

किसान से तात्पर्य है जो केवल कृषि पर निर्भर हैं तथा स्वयं कृषि करते हैं। मजदूरों से तात्पर्य है जो कृषि आधारित मजदूरी अथवा ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी कर पेट पाल रहे हैं। शेष कर्मचारी तो आजकल आर्थिक रुप से संतोषजनक स्थिति में हैं। इस प्रकार के लोगों की संख्या पिछले दस वर्षों में बढ़ी है जिससे गरीबों की संख्या कम हुई है।

कृषि के साथ जिन परिवारों के कुछ सदस्य सरकारी या निजि प्रतिष्ठानों में नौकरी पर लगे हैं उन परिवारों की आर्थिक हालत में सुधार हुआ है। गांवों में बहुत ऐसे युवकों की कमी नहीं जो निकटवर्ती शहरों में स्वरोजगारों से जुड़ गये हैं। जिन गांवों में दो से ढाई दशक पूर्व एक दो बाइक दिखाई देती थी वहां अब लगभग सभी घरों में बाइक है तथा गांवों में महंगी कारें खड़ी दिखाई दे रही हैं। वे सभी प्रसाधन तथा सुख सुविधायें गांवों में लोगों के पास हैं जिनके लिए तीन दशक पूर्व ग्रामीण तरसते थे तथा शहरों में भी गिने-चुने लोगों को ही वह उपलब्ध थीं।

गांवों से गांव तक सड़कें बन गयी हैं। अधिकांश गांवों तक बिजली पहुंच चुकी है। प्राथमिक स्कूलों में मुफ्त भोजन, पुस्तकें, वरदी, मनरेगा जैसी योजनायें गरीबों को आवास आदि पर भारी धन खर्च हो रहा है। फिर भी व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण समाज का एक बड़ा भाग आज भी गरीबी से मुक्त नहीं हो पा रहा।

बढ़ती आबादी हमारे संसाधनों पर बोझ है जिसे रोकना सबसे जरुरी है। केन्द्र और राज्य सरकार में से कोई इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहा।

-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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