किसी की भी जिन्दगी एक खुली किताब है जिसमें दर्ज है सब कुछ। हार-जीत, उतार-चढ़ाव, यश-अपयश, नफरत-मोहब्बत। हमारे सारे कार्यकलाप, सुख और संताप, हमारा जीवन केवल हमारा नहीं अपितु परिवार का, समाज का और देश का भी है। हमारे कार्यकलापों से ये सभी प्रभावित होते हैं। हमारे सद्कर्म इनका यश बढ़ाते हैं तो दुष्कर्म इन्हें कालिमा से ढक देते हैं। अतः हमारा आचरण महत्वपूर्ण है।
क्या हम केवल खाने के लिये व अपना परिवार पालने के लिए काम करते हैं या अपने समय का उपयोग समाज की बेहतरी के लिये भी करते हैं। यही वे बिंदु हैं जो हमें जानवरों से अलग इन्सान बनाता है। अक्सर हम युवावस्था में अपने कामकाज में व्यस्त रहते हैं। समय नहीं मिल पाता पर एक उम्र के बाद जब आप जिम्मेदारियों से निवृत हो जाते हैं, क्या यह उचित नहीं कि आप अपनी बची जिन्दगी, अपने समृद्ध अनुभव, बचा धन समाज और देश के लिये लगायें।
समाज सेवा कीजिये
गौर से देखिये देश में बहुत जगह आपकी जरूरत है। पढ़े-लिखे लोग गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ा सकते हैं। उन्हें किताबें और फीस देकर आगे बढ़ा सकते हैं। पोस्ट ऑफिस, बैंकों व रेल रिजर्वेशन में अनपढ़ लोगों के फार्म भर सकते हैं। भूखे लोगों के लिये लंगर खोल सकते है। गर्मियों में ठन्डे पानी का प्याऊ लगा सकते हैं। जाड़ों में चाय का प्रबंध कर सकते हैं।
ऐसे तमाम काम हैं जो बुढ़ापे में किये जा सकते हैं। जो समय का उपयोग भी है। समाज सेवा भी, पुण्य भी और भगवत भक्ति भी। भगवान का आशीर्वाद और कीर्ति व यश भी मिलता है।
अक्सर अवकाश प्राप्त लोग यह मान लेते हैं कि जीवन अब समाप्त हो गया है। पेंशन खाओ और पड़े रहो यानी क्रियाशीलता समाप्त और बीमारियों को निमंत्रण अपंगता की शुरुआत और इसका मुख्य कारण निष्क्रियता ही है।
दूसरी पारी मानिये
यदि अवकाश प्राप्ति को जिन्दगी का अंत न समझ हम दूसरी पारी मानें तो जो शौक हम अपनी व्यवसायिक व्यस्तता के कारण जवानी में न कर सके वो अब कर सकते हैं जैसे देशाटन, भ्रमण, चित्रकारी, समाज सेवा आदि आदि।
अक्सर हम देखते है अमुक नाम का धर्मशाला या धर्मार्थ अस्पताल या अन्य सामाजिक संस्थाये या किसी के नाम की सड़क या भवन या किसी का पुतला ये सभी वे महानुभाव हैं जिन्होंने समाज की या देश की निःस्वार्थ सेवा की और कृतज्ञ देश उन्हें याद रखता है। उनकी जयन्तियाँ मनाता है। इनमें वे स्वतंत्रता सेनानी भी हैं जिन्होंने व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठ देश के लिये अपना सर्वस्व दिया और महान बन गये। कई लोग यह सोचते हैं कि आजादी तो मिल गयी अब क्या काम बचा। तो उन्हें अपने चारों ओर गौर से देखना चाहिये क्या वे समाज को कुछ नहीं दे सकते? क्या अब करने को कुछ नहीं बचा ?
यहाँ हमारा तात्पर्य यह है कि बुजुर्ग अपना समय श्रम व अतिरिक्त धन यदि समाज की सेवा में लगायेंगे तो समाज भी उन्हें स्वीकार करेगा, मान और सम्मान देगा। साथ ही व्यस्त रहने से वे बीमारियों के चंगुल से दूर एवं स्वस्थ रहेंगे।
याद रखिये खाने, सोने और केवल आराम करने से आप बहुत दिन पेंशन का मजा नहीं उड़ा पायेंगे। बीमार हो चारपाई से चिपक जायेंगे या दुनिया से ही बिदा हो जायेंगे।
अतः व्यस्त रहो, स्वस्थ रहो। दुनिया को प्यार दो, दुनिया से प्यार पाओ।
-अखिलेश चन्द्र श्रीवास्तव
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