हर तरफ हस्र का नजारा दिखाई देता है,
अब ना हिमायती, ना सहारा दिखाई देता है।
भंवर और तूफान में फंस गयी है ज़िन्दगी,
ना कोई कश्ती, ना किनारा दिखाई देता है।
सब बेदर्द लोगों के ही हमदर्द हैं यहां पर,
कोई भी शख्स ना हमारा दिखाई देता है।
हर सूरत काट खाने को आती है यहां तो,
किसी तरह भी ना गुज़ारा दिखाई देता है।
जिस माहौल को देखकर डर सा लगे है मुझे,
अक्सर वही माहौल दोबारा दिखाई देता है।
हरेक नज़र से नफ़रत ही झलकती है मगर,
दूर-दूर तक ना प्यार दिखाई देता है।
-अमर सिंह गजरौलवी
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