समय की शाखायें टूटीं, बिखरीं और छूट गयीं। पतझड़ आने को है, वृक्ष के पत्ते उसका साथ छोड़ रहे हैं। बाकी रह जायेगा तना जो तन कर खड़ा रहेगा। कुछ समय ही सही, लेकिन उसका भी एक अस्तित्व होगा।
मैं समय को मांग रहा हूं। समय मुझसे छूटता जा रहा है। सही कहते हैं न कि समय बहुत तेज से चलता है। समय मानव अनुभव का एक पेचीदा पहलू है। जो हम गंवा चुके उसे वापस लाया नहीं जा सकता। हमारा उसपर हक भी नहीं बनता। हां, हम उसके साथ चलने की कोशिश कर सकते हैं। यह तभी संभव है जब हम उसे गंवाये नहीं। लेकिन उम्र के साथ समय बीतता जाता है। तब तो वह हमारे साथ बीतता है।
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मैं बीते दिनों को याद कर खिल उठता हूं। उन पलों को स्मरण करता हूं जो बहुत अहम थे, जिनके मायने आज तक हैं। वे लोग, उनकी बातें, उनके साथ बिताया वक्त, कभी हंसी, कभी मजाक, कभी झगड़ना, कभी इतराना, कभी चलना, कभी दौड़ना। कितने किस्से हैं, कितनी कहानियां हैं। सचमुच बीता वक्त खूबसूरत था। वे पल शानदार थे। खट्टा-मीठा गुजरा हुआ वक्त आज भी जेहन में उसी तरह बसा है।
उम्र को मैं रोक नहीं पाया। न वक्त ऐसा कर पाया। दोनों में गति थी। दोनों ही बीतने के लिए बने हैं।
वक्त यूं ही बीत गया, पता नहीं चला।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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