सरदी के मौसम में चाय की प्याली बहुत उम्दा कार्य करती है। उम्रदराजों के लिये मानो यह वरदान है।
पड़ोस में रहने वाले एक बुजुर्ग बिना चाय के रह नहीं सकते। उन्हें दिन में चार बार चाय चाहिये। कभी-कभी नींबू की चाय का सेवन भी कर लेते हैं। नींबू बाहर से लाने की जरूरत नहीं क्योंकि नींबू का पौधा काफी अरसे से उनकी यह आस पूरी कर रहा है।
गरमी में भी उनकी चाय की मांग कम नहीं होती। वे चाय को अमृत से कम नहीं मानते। चाय तो जैसे उनके लिये जीवन है।
बूढ़े लोग चाय को पसंद करते हैं। उनके लिये यह बहुत मायने वाला पेय है। मौसम के बदलने से सिर्फ इतना होता है कि चाय के सेवन का तरीका बदल जाता है।
चाय की दीवानगी हमारे बुजुर्गों में देखने को मिलती है कि वे चाय को स्वयं बनाने से भी गुरेज़ नहीं करते। मैंने एक उम्रदराज़ को देखा था। वे खुद हमारे लिये चाय बनाकर लाये। बहू से कहा कि मेहमान आये हैं तो क्या हुआ, जैसा मैं रोज अपने लिये चाय बनाता हूं, उसी तरह इन लोगों के लिये भी बनाऊंगा।
छानबीन करने पर पता लगा कि उन बुजुर्ग की आदत ही ऐसी थी। किसी दूसरे के हाथ से बनी चाय उन्हें भाती नहीं थी। कहीं दूध कम न रह जाये, मात्रा संतुलित होनी चाहिये ताकि स्वाद खराब न हो।
-हरमिन्दर सिंह चाहल.
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