अभिवादन शीलस्य नित्यम् वृद्धोप सेवनम् च।
चत्वारि तस्य वर्धंन्ते आयु विद्या यशोबलम्।।
अर्थात् अभिवादन के योग्य और वृद्धों की सेवा करने से उसकी आयु, विद्या, यश और बल, चार चीजें बढ़ती हैं।
हमारे शास्त्रों का उपरोक्त वचन सौ फीसदी सत्य है। जो लोग अथवा समाज इसका पालन करते हैं, वे सभी प्रगति की ओर अग्रसर होते हैं। प्राचीन काल में ऐसे अधिकांश लोग थे जो इसका पालन करते थे। यही कारण था कि हमारा देश हमेशा से ऋषि-मुनियों और साधु-संतों का रहा है। अपने से बड़े और प्रतिष्ठित पदों पर विराजमान लोगों का सम्मान करना लोग अपना कर्तव्य मानते थे।
जब हम आधुनिक भौतिकवादी युग के लोगों की प्राचीन मानव से तुलना करते हैं तो पता चलता है कि उपरोक्त संस्कारों से हम कटते जा रहे हैं। यही कारण है कि हमारे पारिवारिक रि’ते भी आये दिन तार-तार होते नजर आते हैं। संयुक्त परिवार टूट कर बिखर रहे हैं। लोग सम्मान चाहने का प्रयास तो करते हैं लेकिन वे दूसरों का सम्मान नहीं करना चाहते।
जिन लोगों ने परिवार की रक्षा करते, उन्हें अच्छा भोजन और शिक्षा दिलाने अपनी बहुमूल्य युवावस्था को खर्च कर दिया। उनमें से अनेकों वृद्ध अपनी दुर्दशा को देखकर मर्माहत हैं। अपनी सारी संपत्ति बेटे और अन्य लोगों को देने वाले वृद्धों का और भी बुरा हाल है। कई अपनों की उपेक्षा के शिकार हैं। वे मरना चाहते हैं लेकिन ऐसा भी नहीं हो पाता। बहुत कम वृद्ध ऐसे हैं जिनकी संतानें उनके अंतिम दिनों में उन्हें किसी परेशानी का अहसास नहीं होने देते। घर और बाहर उपेक्षित होने वालों की भी कमी नहीं।
अपने सुख में व्यवधान न पड़े, ऐसे युवक अपने बुजुर्गों को अलग-थलग कर तन्हाई में छोड़ देते हैं। उन्हें उनके सुख-दुख से कोई सरोकार नहीं। वे यह नहीं सोचते कि उनके सिर पर भी बुढ़ापा प्रतीक्षा में है कि जल्दी से जल्दी उन्हें भी वह अपनी गिरफ्त में ले ले।
फिल्मों में भी वृद्ध उपेक्षित हैं। नायक कहता है-‘बुढ़ापे तेरा मुंह काला-जवानी तेरा बोलबाला।’ और भी-‘ना बाबा ना बाबा पिछवाड़े बुड्ढा खांसता’ या ‘क्या करुं राम, मुझे बुड्ढा मिल गया।’
जिधर भी देखो वहीं इस बुढ़ापे का उपहास हो रहा है। ‘वृद्धोप सेवनम्’ की जगह उन्हें परेशान किया जा रहा है और वह भी उनके द्वारा जिन्हें वृद्धों ने उठना, बैठना और चलना सिखाया है। उनके उज्जवल भविष्य के लिये वह सब किया है जितना वे करने में समर्थ भी न थे।
-harminder singh